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________________ तेरापंथ का पालन-पोषण व क्रमिक विकासकाल द्वितीय आचार्यश्री भारीमालजी (संवत् १८६०-७८) जन्म, वंश आदि आचार्यश्री भारीमालजी का जन्म संवत् १८०४ में मेवाड़ के मुंहा गांव में किसनोजी लोढ़ा (ओसवाल) व उनकी धर्मपत्नी धारिणी के यहां हुआ। बाल्यावस्था से ही आपमें वैराग्य भावना का प्राबल्य था, अतः भिक्षु स्वामी से संपर्क होने पर संवत् १८१३ में मात्र दस वर्ष की अवस्था में, अपने पिता किसनोजी के साथ, उनके पास दीक्षा ले ली। भिक्षु स्वामी उस समय आचार्य रुघनाथजी महाराज के संप्रदाय में थे। दीक्षा के बाद से ही आप स्वामीजी के साथ रहे व राजनगर के संवत् १८१५ के चातुर्मास में, उनके साथ थे। अभिनिष्क्रमण के समय व तेरापंथ-स्थापना के समय भी आपके साथ ही रहे। संवत् १८१७ के केलवा चातुर्मास के प्रारम्भ में 'अंधेरी ओरी' की घटना व सर्प के उपसर्ग में आपने बालक होते हुए भी अजेय आत्मबल का परिचय दिया। आपकी निर्मल आत्म-दृष्टि, ऋजुता, विनय, दृढ़ता, विवेक से स्वामीजी आपसे प्रारम्भ से ही प्रभावित रहे व संवत् १८२४ के आपके बगड़ी चातुर्मास काल के सिवाय, आप जीवन भर स्वामीजी के साथ अभिन्न सहायक व सेवक के रूप में रहे। आपके युगल को 'महावीर-गौतम' की उपमा से उपमित किया जाता है। प्रथम सत्याग्रही आचार्य भिक्षु ने अभिनिष्क्रमण के बाद नई दीक्षा लेने का विचार किया तो उन्हें लगा कि भारीमालजी के पिता किसनोजी की प्रकृति उग्र एवं असहिष्णु होने के कारण, उनको साधु की कठोर चर्या पालन करना कठिन रहेगा । अतः उन्होंने उनको साथ रखना उचित नहीं समझा। किसनोजी को जब यह मालूम हुआ तो वे उ.पने पुत्र भारीमालजी को बलात् अपने साथ ले गये । मुनि भारीमालजी ने पिता के साथ रहने पर, आचार्य भिक्षु के सिवाय, अन्य किसी के हाथ से अन्न (भोजन) लेने का त्याग कर दिया। उनके एक, दो, तीन दिन इस तरह निराहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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