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- १४ हे प्रभो ! तेरापंथ
में ही एक सेवक कवि खड़ा सारी बात बड़ी रुचि से सुन रहा था । तेरह साधु व तेरह श्रावकों का योग जानकर उसने तत्काल एक दोहा पढ़कर सुनाया जो इस प्रकार है
" साध साध रो गिलो करे, ते तो आप आपरो मंत । सुज्यो रे शहर रा लोकां, ऐ तेरापन्थी तन्त ॥ "
इस दोहे की बात शहर में सर्वत्र प्रसिद्ध हो गई और लोगों ने उपहास की - भावना से भिक्षु स्वामी के अनुयायिओं को तेरहपंथी या तेरापंथी कहना प्रारम्भ कर दिया ।
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भिक्षु स्वामी उस समय जोधपुर में नहीं थे । उन्होंने जब तेरापंथी नाम सुना तो उन्हें इस नाम में अर्थगांभीर्य प्रतीत हुआ व उन्होंने अपनी अन्तप्रेरणा से उसी . समय पाट से नीचे उतरकर वंदना आसन में बैठकर भगवान की वन्दना की और कहा, "हे प्रभो ! यह तेरापंथ है, इसमें मेरा कुछ भी नहीं है । तेरापंथ ही हमारा • ध्येय है और जो वीतराग - देव के मार्ग का अनुसरण करेगा, वही तेरापंथ का अनुगामी होगा ।" तेरापंथ नाम में स्वतः ही अहंकार और ममकार - विसर्जन की भावना निहित है और स्वामीजी तो इसके साकार स्वरूप थे अतः उन्होंने अप्रत्याशित रूप से हुए नामकरण को स्वीकार कर लिया। उन्होंने एक अर्थ यह भी किया कि पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति - इन तेरह बोलों को स्वीकार करने वाला तेरापंथी होगा । उन्होंने तत्काल 'तेरापंथ' शब्द का विश्लेषण करते हुए गुणपरक व्याख्या में निम्नलिखित छंद रचा
गुण बिन भेष कूं मूल न मानत, जीव अजीव का किया निवेरा । पुण्य पाप कूं भिन्न-भिन्न जानत, आश्रवकर्मों कूं लेत उरेरा ॥ आता कर्मों ने संवर रोकत, निर्जरा कर्म कूं देत बिखेरा । बंध तो जीव कूं बंधिया राखत, सासता सुख तो मोख में डेरा || इस घट प्रकाश किया भव जीव का मेट्या मिथ्यात्व अंधेरा । निर्मल ज्ञान उद्योत किया, औ तो है पंथ प्रभु तेरा ही तेरा ॥ तीन सौ त्रेसठ पाखंड जगत् में, श्री जिनधर्म सूं सर्व अनेरा । द्रव्यलिंगी केई साध कहावत, त्यां पिण पकड़या त्यांराइज केड़ा ॥ ताहि कूं दूर तजे ते संत, विध सूं उपदेश दिया रूड़ेरा । जिन आगम जोय प्रमाण किया, जब पाखंड पंथ में पड़या बिखेरा ॥ व्रत, अव्रत, दान, दया, बतावत, सावद्य निरवद्य करत निबेरा । .. श्री जिन आज्ञा में धर्म बतावत, अं तो है पंथ प्रभु तेरा ही तेरा ।
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