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________________ १५६ हे प्रभो ! तेरापंथ, माध्यम से हजारों व्यक्तियों ने शारीरिक व मानसिक व्यसन, व्याधि व तनाव से मुक्ति पायी है। इसकी प्रक्रिया व प्रयोग सतत् वर्द्धमान हैं। ५. जीवन विज्ञान सरल, सरस, सात्विक जीवन जीने के लिए निश्चित पाठ्यक्रम व पद्धति के रूप में शिक्षा-प्रणाली में 'जीवन-विज्ञान' विद्या का समावेश कर विद्यार्थियों व युवकों को सही जीवन का निर्माण करने की प्रेरणा दी। ६. जन जागरण अभियान किशोर, कन्याएं, युवक, महिलाएं इन सभी वर्गों के उन्नयन के लिए आपकी प्रेरणा से अलग-अलग संस्थान बने तथा सभी वर्गों में सर्वतोमुखी जागरण का स्वर बुलंद हुआ। देश के कोने-कोने में पाद विहार करते हए आपने कोटि-कोटि जनता को अपनी झोली में बुराइयां भेंट करने की प्रेरणा दी तथा अनेक ने अपने व्यसन व दुष्कृत्यों को छोड़ने का संकल्प लिया। विरोधों में अजातशत्रु आपके शासनकाल में अन्तरंग व बाह्य सभी प्रकार के संघर्ष आए । आपने अपूर्व सहिष्णुता, धैर्य व बुद्धिमत्ता से उनका शमन किया। संवत् २०१२ में मुनि श्री रंगलालजी प्रभृति १५ साधु, संवत् २०३०-३२ में मुनि नगराजजी, महेन्द्रकुमारजी, संवत् २०३८ में मुनि धनराजजी, चन्दनमलजी, रूपचन्दजी प्रभृति अनेक साधु-साध्वी संघ की मर्यादाओं तथा अनुशासन को चुनौती देते संघ से अलग हुए पर आपको दूरदर्शिता व सूझ-बूझ के कारण विरोध टिक न सका, संघ की एकता और अनुशासन पर किसी प्रकार की आंच नहीं आई। __ संवत् २००६ जयपुर चतुर्मास में 'बालदीक्षा विरोध' संवत् २०१६ कलकत्ता चातुर्मास में 'मल मूत्र प्रकरण' तथा संवत् २०२७ रायपुर व संवत् २०२६ चूरू चातुर्मास में 'अग्नि परीक्षा' विरोध के नाम पर विद्वेषी लोगों ने घृणा और हिंसा को प्रोत्साहित किया। पर अहिंसक प्रतिकार से आपने सभी विरोधों को मात्र विनोद मानकर अपने अटूट आत्मबल व अजातशत्रुता का परिचय दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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