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________________ आचार्यश्री तुलसी का युग... १४६ शिष्य-सम्पदा (अ) आपने संवत् २०४२ आसाढ़ पूर्णिमा तक २३२ साधु एवं ५४४ साध्वी कुल ७७६ व्यक्तियों को दीक्षित किया । शताब्दियों से किसी जैनाचार्य ने संभवतः अपने जीवन काल में इतनी सारी दीक्षाएं नहीं दीं। (ब) संवत् १९६४ में आपने अपना प्रथम चातुर्मास बीकानेर किया । वहां कार्तिक वदी ८ को एक साथ ३१ दीक्षाएं (८ साधु २३ साध्वियां) दीं। जिनमें आपकी संसार पक्षीय माता बदनांजी की दीक्षा भी थी । संवत् १९६६ के चूरू चातुर्मास में एक साथ १४ भाई और १३ बहनें दीक्षित हुए । संवत् २००० के गंगाशहर चातुर्मास में १५ भाई एक साथ दीक्षित हुए। संवत् १६६५ के एक ही वर्ष की अवधि में ४० दीक्षाएं (११ साधु २६) साध्वी हुई। वे सभी अपने आप में कीर्तिमान हैं। (स) तेरापंथ धर्म संघ में आपके ज्येष्ठ भ्राता मुनिश्री चंपालालजी 'सेवाभावी' संवत् १९८१ में तथा आपके साथ आपकी ज्येष्ठ भगिनी महासती लाडांजी संवत् १९८२ में दीक्षित हए। आपकी मातुश्री वदनोंजी को संवत् १९९४ में आपने दीक्षित किया । तेरापंथ धर्मसंघ में ऐसा योग पहले कभी नहीं बना। (द) आपके परिवार में संसार पक्षीय बुआ के बेटे भाई मुनि चंपालालजी ने संवत् १९८३ में, भानजे मुनि धनराजजी ने संवत् १९६४ में, सगे भतीजे मुनि हंसराजजी ने संवत् २००० में, भतीजे मुनि गुलाबचंदजी ने संवत् २००६ में, दौहित्र मुनि भूपेन्द्रकुमारजी ने संवत् २०३२ में एवं बुआ की पुत्रवधू साध्वी खुमोंजी ने संवत् १९६४ में, भानजी साध्वी मोहनोंजी ने संवत् १९६५ में तथा बुआ की पुत्रवधू साध्वी मोहनोंजी ने संवत् १९६८ में दीक्षा ली। (य) तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के संवत् २०१७ के राजनगर चातुर्मास में१. आपके साथ ६७ साधु व १३० साध्वियां थीं। २. संवत् २००३ के चूरू मर्यादा महोत्सव पर मंघ में १८३ साधु व ४०६ साध्वियां थीं। ३. जयाचार्य निर्वाण शताब्दी के संवत् २०३८ के चातुर्मास काल में बहिविहारी साधुओं के ४२ तथा साध्वियों के ६८–कुल १४० सिंघाड़े थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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