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________________ ६. आचार्यश्री तुलसी का युग : कीर्तिमानों की अपूर्व श्रृंखला (अ) संवत् १९७१ के कार्तिक शुक्ला २ को आपने लाडनूं (ऐतिहासिक नगर चंदेरी) में जन्म लेकर मात्र ११ वर्ष की अवस्था में संवत् १९८२ के पौह वदी ५ को श्रीमद् कालूगणिजी के कर कमलों से दीक्षा ग्रहण की व तब से जीवन में प्रत्येक ११ वर्ष का काल खंड महत्त्वपूर्ण बन गया। दीक्षा लेने के पूर्व प्रथम दृष्टि में ही आप अपने गुरु की दृष्टि में चढ़ गए। दीक्षा के बाद ११ वर्ष तक आपने अपने गुरु का अनुपमेय वात्सल्य पाया। संभवतः इतना वात्सल्य किसी गुरु ने अपने शिष्य को नहीं दिया। अल्प समय में ही गुरु ने आप में • अपनी समस्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र आराधना की ऊर्जा भर दी।। (ब) श्रीमद् कालूगणि ने आपको मात्र २२ वर्ष की अवस्था में ही संवत् १९६३ भादवा सुदी ३ को गंगापुर में युवाचार्य मनोनीत किया। उनके महाप्रयाण के बाद भादवा सुदी ६ को आप आचार्य बने । इतनी छोटी आयु में इतने बड़े धर्म संघ (१३६ साधु एवं ३३३ साध्वियों के संघ) का आचार्य होना जैन इतिहास की विरल घटना है। (स) संवत् २०४२ के भादवा सुदी ६ को आपने पचासवें वर्ष के आचार्यत्व काल में प्रवेश किया, इतने सुदीर्घ समय तक सफल एवं यशस्वी आचार्यत्व काल का यह कीर्तिमान है । आप ७५ वर्ष की आयु में युवा की तरह कार्य करते हैं । आपकी दीप्तिमान आकृति देखते आपके शतायु होकर नया कीर्तिमान स्थापित करने की सहज ही कल्पना की जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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