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________________ नवयुग का उदय व विकास १३५ को तीस हजार नर-नारियों की उपस्थिति में, आपके शव का संस्कार, श्री रंगलालजी हिरण के खेत में हुआ । चंदन की चिता में ज्योतिपुंज का शव फिर ज्योतिर्मय हो उठा तथा धूप, अगर, घी, कपूर नारियल ने वातावरण को सुरभित • बनाए रखा । श्रीमद् कालूगणि स्वयं में तो महान अध्यात्म पुरुष थे ही, पर उन्होंने • अनेक अध्यात्म पुरुषों का अपने सुरुचिपूर्ण हाथों से निर्माण किया और युग पुरुष आचार्यश्री तुलसी सर्वांश रूप में आपकी ही कृति हैं, जिसमें आपने अपनी संपूर्ण ऊर्जा, शक्ति एवं साधना उड़ेल दी । आश्चर्य तो यह कि उस दूर द्रष्टा ने एक बीज में विशाल शतशाखी वट वृक्ष बनने की सम्भावना का अंकन प्रथम दृष्टि में ही कैसे कर लिया ? आपने अपने शासनकाल में सर्वाधिक ४१० दीक्षाएं दीं । हस्तलिखित ग्रंथों में अकल्पित वृद्धि हुई । विद्या और कला के क्षेत्र में संघ समृद्ध हुआ । विहार क्षेत्र काफी विस्तृत हुआ । भावी विकास के बीज भली-भांति वपन कर दिए गए। आप समृद्ध धर्मसंघ को विकास की नयी दिशाओं को और अग्रसर कर स्वयं समाधिस्थ हो गए। आपके स्वर्गवास के समय संघ में १३६ साधु व ३३३ साध्वियां विद्यमान थीं । आपके धर्म परिवार के विशिष्ट श्रमण श्रमणियों का आकलन युग-प्रधान आचार्यश्री तुलसी ने इस प्रकार किया है -- श्रमण परिवार १. मुनिश्री पृथ्वीराजजी -- बत्तीस दीक्षार्थियों को प्रेरणा, सत्रह साधु व पाच साध्वओं को दीक्षा दी। परम वैरागी, तपस्वी, ध्यानी, ज्योतिर्विद, दिव्य शक्ति के प्रयोक्ता, आचार्यों के कृपा पात्र, धर्म संघ की श्रीवृद्धि व गंगाशहर क्षेत्र के निर्माण में विशेष योगदान । - २ से १८. सर्व मुनिश्री छबीलजी, ईशरजी, फौजमलजी, चांदमलजी, आनन्दरायजी, मगनलालजी, डायमलजी, भीमराजजी, तेजमलजी, नथमलजी रीछेड़, रंगलालजी, हीरालालजी, सागरमलजी, बछराजजी, चंपालालजी (राजनगर), कुंननमलजी, चौथमलजी का परिचय पूर्व में दिया जा चुका है । १६. मुनिश्री पूनमचन्दजी जसोल - प्रथम शिष्य से शुभ श्रीगणेश तत्त्वज्ञ व प्रभावक । - २०. मुनिश्री घासीरामजी दिवेर - भिक्षु साहित्य के विशिष्ट अध्येता, संघीय परम्पराओं के ज्ञाता, शासन भक्त, शास्त्रज्ञ एवं चर्चावादी । - २१ से २८. सर्व मुनिश्री चुन्नीलालजी, रणजीतमलजी, हजारीमलजी, सुखलालजी, गनपतरामजी, आसारामजी, हुलासमलजी सभी विशिष्ट तपस्वी । मुनि सुखलालजी घोर तपस्वी व सेवाभावी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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