SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ हे प्रभो ! तेरापंथ स्थान-स्थान पर तार द्वारा नियुक्ति की सूचना दी गई। मिठाई व पुरस्कार बांटे गये। मुनि मगनलालजी ने स्वयं युवाचार्य का जयघोष किया और अब कल का उनका बालक, मुनि तुलसी, जब भी उनके पास से निकलता, तब वे खड़े होकर जयघोष करते । युवाचार्य के प्रति व्यवहार का यह सक्रिय शिक्षण था। स्वर्ग प्रयाण भादवा सुदी ३ को मध्याह्न में आचार्यवर ने केश-लुंचन करवाया व युवाचार्यश्री से श्रीमद् जयाचार्य कृत आराधना सुनी, चतुर्विध संघ व जिनके साथ चर्चा वार्ता या कटुता का प्रसंग रहा, उन सबको याद करके, आपने क्षमायाचना की व सम्पूर्ण मनोयोग से आत्मालोचन किया। हजारों व्यक्ति अब तक दर्शनार्थ पहुंच चुके थे। आपने सबको दर्शन करने का अवसर दिया। डॉक्टर व वैद्य, आपको इस प्रकार साहस व धैर्य से मौत का चुनौती से मुकाबला करते देखकर दंग थे । वे शरीर से निरपेक्ष होकर अन्तर्मुखी बन चुके थे। रात को श्वास का वेग बढ़ा, नाड़ी की गति विषम हो गईं। आचार्यवर ने युवाचार्यश्री को बुलाकर संघ के साधु-साध्वी, पुस्तकें, दीक्षा संयम पालना हेतु शिक्षाएं दीं । मंत्री मुनि, साध्वीप्रमुखा झमकूजी आदि को पुरस्कृत किया। आप ५० मिनट बोलते रहे, यह सचमुच आश्चर्य का विषय था कि जिस दीप का तेल समाप्त हो चुका हो, उसकी लो इतनी प्रखर बन जाए। सर्वश्री मुनि सुखलालजी, पूनमचन्दजी, उदयराजजी कांकरोली से, धनरूपजी राजनगर से, फूलचन्दजी आमेट से व साध्वी केसरजी, केसरजी (छोटा) मधुजी, जुहारांजी क्रमशः पुर, पहुना, पीथास व नागौर से आचार्यवर के दर्शनार्थ आ गये। आचार्यवर ने आगे साधु-साध्वियों का आवागमन रोक दिया। भादवा सुदी ५ को संवत्सरी महापर्व के दिन आपने सशर्त अनशन स्वीकार किया। उस दिन अपार वेदना रही व प्रवचन युवाचार्यश्री तुलसी ने दिया। भादवा सुदी ६ को उपवास का पारणा हुआ । संवत्सरी का उपवास निर्विघ्न होने से जनता को राहत मिली, पर यह राहत अधिक समय टिक न सकी। सायंकाल आपने बैठकर पानी पिया व ज्योंही लेटे, कि श्वास का प्रकोप बढ़ गया। मंत्री मुनि शौचार्थ बाहर गये हुए थे, जानकारी मिलने पर, वे हांफते हुए आए व आचार्यवर ने उन्हें देखकर कहा, 'अबै..' आगे वाणी अवरुद्ध हो गयी। मंत्री मुनि ने आपकी 'हां' में स्वीकृति लेकर चतुर्विध आहार का त्याग करा दिया तथा अर्हत् सिद्ध आदि की शरण सुनाने लगे। पांच मिनट में ही आचार्यवर के प्राणपखेरू आंखों के रास्ते उड़ गए, केवल स्थूल पार्थिव शरीर पीछे रह गया । १०-११ मिनट में सूर्यास्त हो गया। ऐसा लगा कि एक ज्योतिर्मय प्रभापुञ्ज व्यक्ति के अस्त होने पर, भला सूर्य देवता कैसे प्रकाशित रहते । सांझ पड़ते ही विरह वेदना को कालिमायुक्त उदासी भरी रात्रि का आगमन हो गया। भादवा सुदी सप्तमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy