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________________ १२६ हे प्रभो ! तेरापंथ जाएंगे तो आपको भीखणजी की आण है, सब आचार्यों की आण है।' आचार्यवर उसकी उपेक्षा कर शहर में आ गए। पीछे कुछ श्रावकों ने उपहासपूर्वक केशरीचंदजी को कहा कि 'ऐसी आण से कोई फायदा नहीं, यदि हम आपको आगे जाने के लिए आचार्य जवाहरलालजी की आण दिला दें तो आप आगे नहीं जाएंगे क्या?'' केशरीचन्दजी को तो संघर्ष का बहाना भर चाहिए था और वे वहीं बैठ गए। स्थानकवासी समाज में रोष जाग उठा तथा विरोध के स्वर गूंजने लगे। बीकानेर महाराज गंगासिंहजी ने अपने गृहमन्त्री को भेजकर कठोरता से कार्य करने का निर्देश दिया। उन्होंने केशरीचन्दजी को श्रीमद् कालूगणि से क्षमा याचना करने और श्रावकों को श्री केशरीचन्दजी से क्षमा-याचना का आदेश देकर मामले को सुलझाया। इस प्रकार आपके शासन काल में जो भी तूफान और उफान आए, वे आपके पुण्य प्रभाव से स्वतः तिरोहित हो गए। सौभाग्यशाली पूज्य कालगणि अत्यन्त भाग्यशाली थे। हरियाणा यात्रा में उन्होंने जन-जन में हार्दिक भक्ति और श्रद्धा का अतिरेक पाया। बीकानेर महाराजा गंगासिंहजी का आपसे घनिष्ठ भक्ति-सम्बन्ध था, संवत् १९६२ में उदयपुर महाराणा भूपालसिंहजी ने आपके दर्शन किए व उपदेश सुना। बाव (गुजरात) में राणाजी ने आपके दो बार दर्शन किए तथा उनके आग्रह से बाव में साधु-साध्वियों के चातुर्मास प्रारम्भ हुए। चारण कवि लिखमीदानजी आपके श्रद्धालु भक्त थे।आचार्यप्रवर के जीवन काल में कई नये प्रयोग और नयी दिशाओं के द्वार खुले । वे मानसिक या स्नायविक तनाव-मुक्ति के लिए स्वाध्याय का प्रयोग करते तो उन्हें नींद आ जाती। कभी-कभी किसी विषय परचिंतन करते उन्हें नींद आ जाती तथा अवचेतन मस्तिष्क में उस विषय का स्वतः समाधान मिल जाता मानो श्री मघवा गणि ने ही उनको समाधान दिया हो। उनके हाथ से लिखे पन्नों पर सरस्वती मंत्र के उल्लेख से लगता है कि विद्याविकास की भावना से उन्होंने मंत्र-अराधना की हो। आचार्यवर दग्धाक्षर की आशंका से अच्छे कवि होने पर भी कविता नहीं लिखते पर कभी-कभी शिक्षा हेतु सुन्दर दोहा या छंद अवश्य रच लेते थे। संवत् १९६१ फाल्गुन सुदी ६ को आपने मुनि तुलसी को संकेत कर एक सोरठा कहा जो इस प्रकार है 'सीखो विद्या सार, परहरो परमाद ने। बधसी बहु विस्तार, धार सीख धीरज मने।' फाल्गुन वदि ६ को एक और सोरठा आपने फरमाया जो इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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