________________
१२४ हे प्रभो ! तेरापंथ
दीक्षा के विषय में तेरापंथ का दृष्टिकोण यह है कि योग्य दीक्षा होनी चाहिए, चाहे वह बालक, युवा या वृद्ध ही क्यों न हो। बालक को स्थायी धार्मिक संस्कार ढालना में सुगम होता है। कुछ लोग बाल दीक्षा का विरोध करने में थे। मारवाड़ (जोधपुर राज्य) में नाबालिग दीक्षा विरोधी बिल रिजेन्सी कौंसिल में २८-२-१४ को पेश हुआ था। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा ने इसके विरोध में ज्ञापन दिया। मारवाड़ राज्य के मुख्य न्यायाधीश ए. डी० सी० बार ने अन्य राज्यों में ऐसे बिल के कानून बन जाने और उसके परिणामों को देखने तक इस बिल को पास करने की कार्यवाही स्थगित कर दी। यू० पी० कौंसिल में सन् १९१४ में मुजफ्फरनगर के लाला सुखवीरसिंहजी ने नाबालिग दीक्षा विरोधी बिल पेश किया। उन्हें भी इलाहाबाद में तेरापंथ का शिष्टमण्डल मिला व ज्ञापन दिया। लालाजी ने ३१-१२-१४ को त्यावर में श्रीमद् कालगणिजी के दर्शन किए तथा दीक्षा समारोह देखा। उन्होंने भावना रखी कि उनका बिल तेरापंथ दीक्षा पर लागू न हो, ऐसी व्यवस्था वे उसमें करेंगे। बाद में युद्ध छिड़ जाने से बिल पास न हो सका। बीकानेर स्टेट विधान सभा में भी १८-१२-२६ को ऐसा प्रस्ताव आया पर तेरापंथ समाज की सतर्कता के कारण प्रस्ताव पास नहीं हो सका। धारा सभा बड़ौदा में १६-१२-२६ को ऐसा ही बिल आया, जिसके विरुद्ध भी ज्ञापन दिया गया। चार दीक्षार्थियों को बड़ौदा ले जाकर सभा के सदस्यों से मिलाया गया और वार्ता कराई गयी। बड़ौदा महाराजा को भी ज्ञापन दिया गया। तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली से सभी प्रभावित हुए तथा बिल पास होने से रुक गया। इस तरह आपके आशीर्वाद व मंत्री मुनि की सलाह से श्रावक समाज सभी जगह सफल हुआ।
समाज में भूचाल
आचार्यवर ने समाज के उफान और तूफान को भी शांति से झेला । आपकी निरपेक्षता, तटस्थ वृत्ति और शान्ति ने बड़ी समस्या को लघु बना दिया। संवत् १९७३ में विदेश यात्रा को लेकर थली प्रदेश (बीकानेर डिवीजन) का ओसवाल समाज 'श्री संघ और विलायती' दो धड़ों में बंट गया। आपस में खान-पान, शादी-विवाह, आने-जाने तक का व्यवहार बंद हो गया । परस्पर गाली-गलौच
और निम्न स्तरीय आलोचना का खुलकर प्रयोग होने लगा। विशुद्ध सामाजिक विवाद होने पर भी धर्मसंघ या संघपति अप्रभावित रह सकें, यह संभव नहीं था। तेरापंथ का मुख्य विहार क्षेत्र उस समय थली था । सारे समाज की आचार्यवर में अगाध श्रद्धा थी। आपने विवाद रोकने का प्रयत्न किया पर अहं के आवेग मे श्रद्धा भी गौण बन जाती है। आपने साधु-साध्वियों को दिशा-निर्देशन देते हुए कहा, 'इस समय थली का समाज दो पक्षों में बंटा हुआ है, आवेश में वे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org