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________________ नवयुग का उदय व विकास १२३ दीक्षा में अवरोध इसी तरह का विरोध तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली को लेकर भी हुआ। संवत् १९७७ में आपके भिवानी चातुर्मास में चार दीक्षाएं होने वाली थीं। तेरापंथ के विरोधी लोगों ने भ्रामक प्रचार कर जनता को भ्रान्त किया और दीक्षा को रोकने का संकल्प लेकर दीक्षा के पूर्व रात्रि में एक सभा का आयोजन किया गया। सभा में आग भड़काने वाले भाषण चल रहे थे कि यकायक सबको लगा कि सफेद भारी वस्तु आकाश से तेजी से नीचे गिरती आ रही है। उसे देखकर लोग भय भ्रान्त हो गए तथा अपनी-अपनी जान बचाने की फिक्र में भाग गए। सभा समाप्त हो गई। दूसरे दिन प्रातः निर्विघ्न दीक्षाएं हुईं। विरोध करने वाले हतोत्साह हो चुके थे। संवत् १९९१ में जोधपुर चातुर्मास में श्रीमद् कालगणिजी ने अपने जीवनकाल की सर्वाधिक २२ दीक्षाएं एक साथ दी। वहां भी दीक्षा के पूर्व विद्वेष के कारण दीक्षा का विरोध रचा गया पर मर्वश्री माणकचन्द जी भण्डारी, उम्मेदराजजी भण्डारी, हणतमलजी सिंघी ने महानिरीक्षक पुलिस को सही स्थिति बताई। राजकीय व्यवस्था, सुरक्षा और सतर्कता के कारण स्थिति जटिल नहीं बनी। वहां के प्रमुख एवं प्रख्यात श्रावक प्रतापमलजी मेहता एडवोकेट ने प्रधानमंत्री को जाकर चुनौती भरे शब्दों में कहा कि 'दीक्षा हर हालत में होगी और राजा की ओर से हस्तक्षेप करने का प्रयास किया गया तो सरकारी तोपों व गोली का पहला शिकार वे होंगे।' अत्यन्त विनम्र एवं प्रतिष्ठित वकील के मुंह से ऐसी बात सुनकर प्रधानमन्त्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि दीक्षाओं में किसी प्रकार का अवरोध किसी ओर से नहीं होगा । संवत् १९६२ उदयपुर चातुर्मास में वहां के कोठरी परिवार के दस वर्षीय सुन्दर, समझदार, सहज विरक्त एवं भावुक बालक 'मीठालाल' की दीक्षा को लेकर बड़ा होहल्ला मचाया गया कि 'श्रीमद् कालूगणिजी उसे जबरदस्ती दीक्षित कर रहे हैं, उसके माता-पिता सात दिन से निराहार हैं, रो रहे हैं और उन्हें दीक्षा की अनुमति देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।' आचार्यवर पंचायती नोहरे में ठहरे हुए थे। वहां उपद्रव करने की योजना थी पर ईश्वरचन्दजी चोपड़ा की सतर्कता के कारण वैसा नहीं हो सका । दीक्षा महाराणा भोपाल कालेज में होने वाली थी, पुलिस में दंगा होने की रिपोर्ट की गयी। दीक्षा का समय आ गया। हजारों यात्री एकत्रित हो गए। पुलिस अधिकारी वहां आए और आचार्यप्रवर के दर्शन कर स्थिति की जानकारी की। मीठालालजी और उसके माता-पिता से वार्ता कर उनकी स्वेच्छा का पता लगाया। दीक्षा पद्धति देखकर -पुलिस अधिकारी संतुष्ट हो गए, ठाठ बाट से दीक्षा हुई। महाराणा भूपालसिंहजी को स्थिति की जानकारी दी गई, तो वे प्रसन्न हए और सोचा कि सनी बात पर यदि कार्यवाही की जाती, तो अनर्थ हो जाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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