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________________ सप्तमाचार्य श्रीमद् डालगणि १०३ के अनुभव एवं दूरदर्शिता के गुणों से प्रभावित होकर, उन्हीं पर इस ऐतिहासिक निर्णय का दायित्व दिया तथा आश्वस्त किया कि वे जो भी निर्णय देंगे, वह सर्वसम्मति से स्वीकार्य होगा। मुनिश्री कालूजी ने संघ के साधुओं के अविचल विश्वास के प्रति आभार प्रकट करत हुए संघ के गौरवपूर्ण इतिहास तथा मर्यादाओं का उल्लेख किया । संतों की भावनाओं को दृष्टिगत रखते मुनिश्री डालचंदजी (डालगणि) को तेरापंथ का सातवां आचार्य घोषित किया। मुनि डालचन्दजी दूर कच्छ से वहां अभी पहुंचे नहीं थे। साधुओं के प्रवास-स्थल के बाहर अनेक श्रावक उत्सुकता से निर्वाचन का परिणाम जानना चाहते थे । ज्योंही उन्होंने निर्णय सुना; जनता हर्ष से झूम उठी व तरापंथ धर्मसंघ की नीतिमत्ता और आत्मसाधना की अमिट छाप जम गयी। स्थान-स्थान पर लाडनूं से तार द्वारा सूचना दी गई, लोगों ने आनन्द मनाया। मिठाईयां बांटी गयीं तथा दीवाली मनाई गई। __श्री डालमुनि थली पधारते सर्वप्रथम फतहगढ़ आए तथा मृगशीर्ष वदि ६ को मुनि तेजमालजी को दीक्षित किया। वहां साध्वी अणचोंजी विराज रही थीं, वहां से दोनों सिंघाड़ १२ ठाणों से बाव पहुंचे। बाव के दीवान डूंगरभाई मेहता ने स्वागत करते अनायास ही कह डाला, 'अब तक आप कच्छ के पूज्य थे, अब लगता है आप सारे संघ के पूज्य बन जाएंगे।' वहां से विहार करते सांचोर के पास आडेल गांव पधारे, जहां पचपदरा के श्री 'बनजी चन्दोणी' व्यापार करते थे। उन्होंने आपके गुणगान में एक श्लोक रचकर सुनाया जो आज भी कई लोगों को कंठस्थ है। जसोल पधारते रास्ते में 'सोन चिड़ी' के शकुन होने पर श्री हिन्दूजी जोधाणी ने कहा, 'आप शीघ्र ही आचार्य बनेगे, ऐसा शकुनों से लगता है।' जसोल में कोठारी परिवार की अग्रगण्य श्राविका कसूबो बाई (लेखक की दादी) ने भी अन्तःप्रेरणा से यही बात कही। भविष्य के शुभ कार्य का कभी-कभी अनायास ही आभास होने लगता है। क्रमशः सात संतों से विहार करते आप जोधपुर से १० किलोमीटर दूर 'चौपासणी' गांव पधारे, एक तिबारी में विराजे । श्री डालगणि के निर्वाचन का तार जोधपुर पहुंचने पर वहां के श्रावकजन तेरापंथ के नव-निर्वाचित आचार्य का प्रथम स्वागत करने को लालायित थे। 'चौपासनी पहुंचने की सूचना होने पर, वहां के प्रमुख राज्याधिकारी एवं वरिष्ठ श्रावक भण्डारी किशनमलजी, लिछमणदासजी आदि घोड़ों पर सवार होकर चौपासनी पहुंचे। उस दिन पौ वदि ५ थी। श्री डालमुनि हाथ में रूखी-सूखी बाजरे की रोटी लिये, आहार कर रहे थे, तिबारी पर पर्दा लगा हुआ था कि एकाएक भण्डारीजी ने ऊंचे घोष और समवेत स्वरों से वंदना करते हुए ‘खमाघणी अन्नदाता, पूज्य परमेश्वर भगवान् ने घणी खमा' कहकर आपकी प्रशस्ति प्रारम्भ की। श्री डालगणि ने टोकते हुए उन्हें इन शब्दों के प्रयोग के लिए उलाहना दिया तो उन्होंने तार बताते हुए निवेदन किया, 'आचार्य का निर्वाचन तो दो दिन पहले ही हो चुका है और आप ही चार तीर्थ के स्वामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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