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________________ .६२ हे प्रभो ! तेरापंथ __ अन्य विशिष्ट साधु साध्वी ५. महातपस्वी चन्नीलालजी (सरदारशहर) उच्चकोटि के साधक तथा महान् तपस्वी-संवत् १९४३ से ६ वर्ष एकान्तर तप, बाद में प्रतर तप जिसमें ५ पंचोले, ६ चोले, ४ तेले, ५ उपवास किया। संवत् १९४६ से २३ वर्ष बेले-बेले तप करने का कीर्तिमान स्थापित किया और लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की तीन परिपाटी पूरी कर दूसरा कीर्तिमान बनाया । समग्र तपस्या इस प्रकार रही___ उपवास १/६००, २/३६, ३/३६, ४/४४, ५/२५, ६/३, ७/२, ८/१, ६/१, -१०/३, ११/२, १२/१, १३/१, १४/१२, १५/१, १६/१, १७/१, १८/१, (समग्र ३४ वर्षों में २२ वर्ष तपस्या) -मुनि चौथमलजी (पुर) संवत् १९५६ में आपने आछ के आगार छः मासी (१८७ दिन) तपस्या की। आपके पुत्र रणजीतमलजी ने सवत् १६६३ में दीक्षित होकर संवत् १९६८ में छः मासी तप किया। ३. तत्त्वज्ञ मुनि पूनमचन्दजी (पचपदरा) संवत् १९६८ से १९६६ तक जयपुर में स्थिरवास, श्रावक समाज को तत्त्व ज्ञान की सतत एवं गहन शिक्षा, विशिष्ट व्यक्तियों से प्रभावोत्पादक मिलन, अंतिम वर्षों में भारी संलेखना तप व संथारे में पंडित-मरण । ४. शास्त्र वेत्ता मुनि डायामलजी (हरनावा) [१९४६ से १९८३] तत्त्व की गहरी धारणा वाले शास्त्रवेत्ता, चर्चावादी, भांगा तथा गणितानुयोग के विशेष अध्येता। ५. न्यायविद् मुनि भीमराजजी (आमेट) [१६४८ से १६६६] __संस्कृत के प्रकांड विद्वान, विशिष्ट तत्त्वज्ञ, कुशल चर्चावादी, ज्योतिष काव्य कोष, व्याकरण, तर्क शास्त्र व न्याय के गहन अध्येता। निरभिमानी, गंभीर व अंहरज्ञा के धनी । युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी द्वारा 'शासन स्तंभ' उपाधि से उपमित। ६. साध्वी लिछमांजी मघवा गणि की प्रथम शिष्या-विदुषी व प्रवचनकार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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