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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला जैन धर्म को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने में उनकी महान् रुचि है और उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं अनेकों का अनुवाद किया है। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विद्वत् सम्मेलनों में, जैन विद्या के विविध विषयों पर शोधपत्र प्रस्तुत किया है और अनेक विदेशी विद्वानों और संस्थाओं को तीन लाख से अधिक का जैन साहित्य भेजा है। उन्होंने विदेशों में अनेक स्थानों पर भाषण दिये हैं और वे मार्च में 2002 में लंदन विश्वविद्यालय के सुप्रतिष्ठित "स्कूल आफ ओरियंटल और अफ्रिकन स्टडीज" के तत्त्वावधान में आयोजित जैन विद्या-कर्मशाला में भी अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया है।
___ मै आशा करता हूं कि यह हिन्दी अनुवाद जैन धर्म और विज्ञान के समन्वय के नये आन्दोलन को प्रवर्धित करेगा।
अन्त में मैं पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सचिव डा. सागरमल जैन के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने अपने संस्थान से इसके प्रकाशन में रुचि लेकर मेरे साहित्यिक भविष्य को प्रोत्साहित किया है।
कांति वी. मरडिया
लीड्स, इंग्लैंड 14 मार्च 2002
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