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अनुवादकीय
आधुनिक वैज्ञानिक युग में यह आवश्यक है कि विभिन्न धर्म-तंत्र अपनी मान्यताओं एवं आचार-विचारों को वैज्ञानिक रूप में, समकालीन भाषाओं में अभिव्यक्त करें जिससे वर्तमान समय में धार्मिक रुचि विकसित एवं संवर्धित हो सके। इससे हमारे पुरातन साहित्य के भाव, भाषा और शब्दावली को सही रूप में समझने में सहायता मिलेगी। यही नहीं, आज के विश्वीकरण के युग में ऐसे साहित्य की भी आवश्यकता है जो प्राचीन धार्मिक आचार-विचारों को वैज्ञानिकता या विज्ञान - समन्वितता प्रदान कर सके। डा. मरडिया की अंग्रेजी पुस्तक इन मानदंडों को पूर्ण करती है। इस पुस्तक में जैन सिद्धान्तो के निरूपण के लिये डा. मरडिया द्वारा विकसित चारों स्वतः सिद्ध अवधारणायें आगमिक स्रोतों पर आधारित हैं, पर उनकी व्याख्या नवीन एवं वैज्ञानिक रूप में की गई है। इस पुस्तक के दस अध्यायों के 43 चित्र, 11 सारणी तथा अनेक आनुभविक गणितीय धारणायें इसकी रोचकता तथा वैज्ञानिकता के संवर्धन में सहायक हैं। इसके इस नये रूप का सर्वत्र स्वागत होगा । इक्कीसवीं सदीं में ऐसे ही जैन धार्मिक साहित्य की आवश्यकता है।
विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण इस प्रकार के साहित्य के प्रणयन, अनुवाद एवं संवर्धन में मेरी रुचि रही है। इस कोटि के साहित्य के व्यापक प्रसार के लिये यह भी आवश्यक है कि इसे अनेक भाषाओं के माध्यम से प्रसारित किया जाय । डा. मरडिया की अंग्रेजी पुस्तक "साइंटिफिक फाउंडेशन आफ जैनीज्म" ने पश्चिमी जगत में पर्याप्त लोकप्रियता पाई है। अतः यह स्वाभाविक ही था कि यह पुस्तक हिन्दी जगत में भी प्रसारित हो । उनके अनेक मित्रों के सुझाव ने उन्हें इस ओर प्रेरित किया एवं उन्होंने मुझे इसे हिन्दी में अनूदित करने का अवसर प्रदान किया । यह मेरे लिये सौभाग्य की बात है । मेरा यह प्रयास उनकी आशाओं के अनुरूप होगा एवं प्रसार पायगा, ऐसी आशा है।
अनुवाद सदैव भावात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं। इस दृष्टि से मैंने लेखक के विचारों को सरल भाषा में देने का प्रयास किया है । तथापि, वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत अनेक प्रकरणों में भाषा किञ्चित् सरलता से ऊपर पायी जाती है । यह अनुवाद इसका अपवाद नहीं है। इस प्रक्रिया में किञ्चित् विस्तार, नवीन सूचनायें और टिप्पणी भी जोड़नी पड़ी है। इस अनुवाद को डा. मरडिया एवं सौ. पवन जैन ने स्वयं देखा है और अनुमोदित किया है । आशा है, पाठकगण इसे रोचक पायेंगे ।
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