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________________ कर्मों का व्यावहारिक बंध 51 दर्शन मोहनीय के उदय से मिथ्या दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। इसमें अतिवाद और सही और गलत के बीच विभेदन की अक्षमता भी समाहित है। चारित्र मोहनीय के घटक के उदय से कषाय और आवेग उत्पन्न होते हैं जो सम्यक-चारित्र को उन्मादित करते हैं। ये दोनों ही घटक एक-साथ काम करते हैं और आध्यात्मिक प्रगति को अवरुद्ध करते हैं। ज्ञानावरण कर्म के उदय से ज्ञान की पूर्णता में पांच प्रकार से बाधाएं आती हैं - 1. इंद्रिय और मन की क्रियाओं में बाधा डालता है (मति ज्ञान) 2. तर्क-क्षमता में बाधा डालता है (श्रुत ज्ञान), 3. दूर-दर्शन सामर्थ्य की अभिव्यक्ति (अवधि ज्ञान) में बाधा डालता है, 4. मन के विचारों को जानने में बाधा डालता हैं (मनःपर्यव ज्ञान) और 5. सर्वज्ञता की क्षमता की अभिव्यक्ति में बाधा डालता है। दर्शनावरण कर्म आंख या अन्य इंद्रियों के प्रत्यक्ष या परोक्ष दर्शन में बाधक होता है, अवधि-ज्ञान-पूर्वी दर्शन में बाधा डालता है और केवल दर्शन की अभिव्यक्ति में बाधक होता है। सुख-विकारी मोहनीय कर्म (दर्शन और चारित्र मोहनीय कर्म) आत्मा की ऊर्जा या क्षमता को सीमित करता है, मन, वचन और काय की क्रियाओं को भी सीमित करता है। यह भ्रांति उत्पन्न करता है। यह इच्छायें उत्पन्न करता है। इन सब कारणों से यह सभी कर्मों के संचालन में प्रेरक बनता है। इसका प्रभाव उसी प्रकार का होता है जैसे उन्माद की दशा में स्वयं में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है। अब हम द्वितीयक कार्मिक घटकों (अधातिया कर्मों) के समुच्चय के प्रभावों का संक्षेपण करेंगे। वेदनीय कर्म का घटक सुख-दुःख की अनुभूति की मानसिक अवस्थाओं को अभिलक्षणित करता है। नाम-कर्म का घटक जाति, लिंग और वर्ण (तथा सम्पूर्ण व्यक्तित्व) को निर्धारित करता है। आयु कर्म का घटक अगले जन्म की दीर्घ-जीविता निर्धारित करता है। गोत्र कर्म का घटक उन परिस्थितियों को निर्धारित करता है जो आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाते हैं। 5.3 भावात्मक क्रियायें और चार कषाय अब हम व्यवहार में कर्म की गतिशीलता का विवरण देंगे हैं। मान लीजिए कि किसी भी भावात्मक क्रिया के कारण कर्म-बन्ध में समाहित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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