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________________ 48 टिप्पणियाँ 1. पी. एस. जैनी पृष्ठ. 125 नाम कर्म शरीर से सम्बन्धित है और यह कहा जाता है कि यह दो सूक्ष्म शरीरों को उत्पन्न करता है जो हमारे शरीर की अभिव्यक्ति में कारण होते हैं। ये दो शरीर हैं 1. तैजस शरीर - उष्ण शरीर, जो जीवन तंत्र की तापमान - जैसी महत्त्वपूर्ण क्रियाओं को बनाये रखता है और 2. कार्मण शरीर, जो किसी भी समय पर आत्मा के साथ उपस्थित सम्पूर्ण कर्म - पुद्गलों का योग होता है। जैनों के पुनर्जन्म सिद्धांत की अवधारणा में इन दोनों शरीरों के अस्तित्व की बात अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये शरीर आत्मा को एक जन्म से दूसरे जन्म तक जाने के लिये (यद्यपि अपनी सामर्थ्य के कारण भी) वाहन - माध्यम का काम करते हैं । 2. पी. एस. जैनी, पृष्ठ 126-128 - जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला मृत्यु के समय ऐसा लगता है कि अघातिया कर्म भावी शरीर या जन्म के लिये विशिष्ट दशायें पूर्व-निर्धारित कर देते हैं। इससे सम्बन्धित सूचनायें कार्मण शरीर द्वारा वाहित की जाती हैं जो तैजस शरीर के साथ आत्मा को, अपने वर्तमान भौतिक शरीर से मुक्त होने पर, नये शरीर में प्रतिस्थापित कर देता है। ऐसा माना जाता है कि आत्मा में स्थूल शरीर से मुक्त होने पर सहज ही पर्याप्त संचालन बल होता है, जिससे यह अविश्वसनीय गति से सीधे ही उस लक्ष्य की ओर बढ़ता है जिसे उसके सहवर्ती कर्मों ने पूर्व-निर्धारित किया है। यह गति विग्रह गति (या पुनर्जन्म के लिये गति) कहलाती है। यह माना जाता है कि नये लक्ष्य की चाह कितनी भी दूरी पर क्यों न हो, यह केवल एक समय में ही वहां पहुंचा देती है । 3. पी. एस. जैनी, पृष्ठ 98 आकाश का विभेदक गुण यह है कि उसमें सभी द्रव्यों को स्थान देने की क्षमता हैं। यह उस स्थिति में ही सही है कि यह वास्तव में (लोकाकाश के प्रकरण में) स्थान दान करता है या नहीं (अलोकाकाश के प्रकरण में)। इसलिये 'आकाश' केवल एक द्रव्य है और इसका विस्तार अनन्त है। इसके साथ ही, आकाश को अत्यन्त सूक्ष्म या लघुतम 'आकाश - बिंदुओं' (प्रदेशों) में विभाजित किया जा सकता है। इन प्रदेशों मे कुछ विस्तार तो होता है, पर वे पुनर्विभाजित नहीं किये जा सकते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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