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________________ जन्म-मरण के चक्र 47 अंतराय कर्म ज्ञानावरण कर्म दर्शनावरण कर्म वेदनीय कर्म सातावेदनीय कर्म असातावेदनीय कर्म नाम कर्म आयु कर्म गोत्र कर्म ब. वीर्य-अवरोधक कर्म स. ज्ञान-आवरक कर्म द. दर्शन-आवरक कर्म 2. द्वितीयक कर्म (अघातिया कर्म) 1. अनुभूति-उत्पादक कर्म (i) सुख-उत्पादक कर्म = (ii) दुःख उत्पादक कर्म = 2. शरीर (व्यक्तित्व) - निर्माणक कर्म 3. •जीविता-निर्धारक कर्म 4. पर्यावरण –निर्धारक कर्म = 2. शरीर के प्रकार कार्मिक शरीर तैजस संपुट छह द्रव्य आत्मा पदार्थ आकाश अधिष्ठित आकाश अनधिष्ठित आकाश गति माध्यम स्थिति माध्यम परिवर्तन माध्यम आकाश प्रदेश अंतिम/चरम/ = सूक्ष्मतम कण अव-परमाणुक कण = कार्मन-कणों से निर्मित तैजस शरीर - लं + o o जीव, आत्मा पुद्गल (पदार्थ + ऊर्जा) क्षेत्र लोकाकाश अलोकाकाश धर्म द्रव्य अधर्म द्रव्य काल द्रव्य प्रदेश परमाणु, o o सूक्ष्म परमाणु घटक, अणु वर्गणा कण-समूह/ कण-वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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