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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला 3.4 चार गतियां या अस्तित्व की अवस्थायें
प्रत्येक प्राणी में उसकी मानसिक अवस्था के अनुरूप विभिन्न कोटि की संवेदनशीलता पाई जाती है। हम यहां उनकी मानसिक अवस्था के अनुरूप चार प्रमुख दिशायें बताना चाहते हैं।
आध्यात्मिकतः उच्चतर मनुष्य (चित्र 3.2 देखें)
मनुष्य
औसत मनुष्य अपराधी मनुष्य
। {
पंचेंद्रिय चार इंद्रिय तीन इंद्रिय
दो इंद्रिय कंद-मूल
सांद्रित एकेंद्रिय पौधे
एकेंद्रिय पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि एवं सूक्ष्म जीव-जन्तु 5x104 * सूक्ष्मतम जीवाणु 104 * अचेतन वस्तुयें 0 चित्र 3.1 विभिन्न जीवों के लिये आत्म-शुद्धि की जीवन-धुरी। (यह चित्र
रैखिक माप पर नहीं बना है)।
इनमें से प्रथम नारक अवस्था में सर्वाधिक यंत्रणा होती है। आनंद की उच्चतम अवस्था को देव या स्वर्ग अवस्था कहते हैं। यह सुखवादी आनंद होता है, पर इसे परम आनंद की अवस्था नहीं कह सकते। जिस अवस्था में प्राणी यह नहीं जानता कि कल क्या था, कल क्या होगा, वह
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