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________________ 22 जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला कच्चा तेल = पेट्रोल + अशुद्धियां संदूषित आत्मा (आत्मा + कम) - कर्म = शुद्ध आत्मा एक दूसरी उपमा भी यहां दी जा सकती है। अशुद्ध या संदूषित आत्मा एक तेल-लगा वस्त्र है। आर्द्रता के कारण वस्त्र धूलिकणों को आकर्षित कर सकता है। ये धूलिकण कर्म-पुद्गल के समान हैं तथा वस्त्र एवं तेल का बंध कर्म-बंध के समान है। यहां यह ध्यान में रखना चाहिये कि आत्मा की प्रकृति विशिष्ट शरीर-धारी के रूप में भी अपरिवर्तित रहती है। इसे ठीक उसी प्रकार समझना चाहिये जैसे किसी भी वस्त्र को, उसके द्रव्यमान में परिवर्तन किये बिना विभिन्न आकार-प्रकारों में परिणत किया जा सकता है। अंत में, एक रोचक उपमा और दी जा सकती है। हम जानते हैं कि वायरस किस प्रकार हमारे शरीर-तंत्र में बीमारी के रूप में परिवर्तन लाते हैं। इसी प्रकार, कर्म-पुद्गल रूपी वायरस हमारी आत्मा को प्रभावित करते 2.5. पारिभाषिक शब्दावली 1. नव तत्त्व आत्मा = जीव (संसारी या मुक्त) कार्मिक पुद्गल = अचेतन, अजीव घटक कर्म-बल/कर्म-आगमन = आस्रव कर्म-बंध/समेकन = बंध कर्म-बंध-कवच = संवर कर्म-क्षय = निर्जरा मुक्ति = मोक्ष भारी कर्म-पुद्गल = पाप लघु कर्म-पुद्गल = पुण्य 2. आत्मा के घटक (गुण) सुख विशिष्ट अनुभूति ज्ञान जानना दर्शन देखना वीर्य ऊर्जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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