SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय सूची 20 24- 31 24 25 28 32-48 32 4.3 35 37 xxii 2.4.1 चुम्बकत्व 2.4.2 अन्य विविध अनुरूपतायें 2.5 पारिभाषिक शब्दावली अध्याय 3 : जीवन का अनुक्रम : (स्वतःसिद्ध अवधारणा 2) 3.1 स्वतःसिद्ध अवधारणा 2 3.2 जीवन के यूनिट और जीवन धुरी/अक्ष 3.3 इंद्रियों की संख्या या चेतना (बुद्धि) के आधार पर जीवन की धुरी के विभाग 3.4 चार गतियां या अस्तित्व की अवस्थायें 3.5 पारिभाषिक शब्दावली अध्याय 4 : जन्म और मरण के चक्र (स्वतःसिद्ध अवधारणा 3) 4.1 स्वतःसिद्ध अवधारणा 3 4.2 कार्मिक घटक किसका परिवहन होता है ? 4.4 छह द्रव्य 4.5 जैनों की कण-भौतिकी 4.6 जीवन चक्रों का व्यावहारिक निहितार्थ 4.7 सामान्य समीक्षा 4.8 पारिभाषिक शब्दावली अध्याय 5 : कर्मो का प्रायोगिक बंध (स्वतःसिद्ध अवधारणा 4 अ) 5.1 स्वतःसिद्ध अवधारणा 4 अ 5.2 व्यवहार में कर्म के घटक 5.3 भावात्मक क्रियायें और चार कषाय 5.4 कषायों की तरतमता या कोटि 5.5 पारिभाषिक शब्दावली अध्याय 6. कार्मन-कणों का सीमांत अवशोषण (स्वतःसिद्ध अवधारणा 4 ब) 6.1. स्वतःसिद्ध अवधारणा 4 ब 6.2. स्वतःसिद्ध अवधारणा 4 ब के निहितार्थ 6.3. हिंसा का भाव पक्ष 6.4. जैन विश्वीय कालचक्र 6.5. पारिभाषिक शब्दावली 43 AA 49-60 49 50 51 61-71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy