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जैनधर्म और आधुनिक विज्ञान
125 "कोई व्यक्ति, जो धार्मिक दृष्टि से प्रबुद्ध है, मुझे ऐसा लगता है जैसे उसने अपनी उत्तम योग्यता से स्वयं को अपनी स्वार्थी आकांक्षाओं की बेडियों से मुक्त कर लिया हो।"
उनका विज्ञान और धर्म के प्रति दृष्टिकोण भी ध्यान देने योग्य है (आइंस्टीन, 1940,1941)
"इस बात की संभावना में विश्वास उत्पन्न होता है कि अपने अस्तित्व के संसार के लिये मान्य नियम तर्क संगत हैं। ये नियम तर्क के द्वारा समझे जा सकते हैं। मैं उस व्यक्ति को यथार्थ वैज्ञानिक नहीं मान सकता जिसे इस पर गहन विश्वास न हो। इस स्थिति को निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है :
"धर्म के बिना विज्ञान पंगु है : विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।"
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