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________________ जैनधर्म और आधुनिक विज्ञान पांच वर्ण 1. 2. 3. 4. 5. पांच रस दो गंध आठ स्पर्श चरम कण दो प्रकार के होते हैं : 123 क्वार्क के तीन आवेश वर्ण + सफेद और काले वर्ण के रूप में ऋणात्मक व धनात्मक- दो आवेश लेप्टॉन और क्वार्क के रस, (क्वार्क का छठवां रस अभी तक पहिचाना नही जा सका ) । चक्रण 1 और 2 1. स्पर्श - गोचरता - गॉज बोसॉन; जी. आर. जैन इस गुण को ऋण एवं धन आवेशों के रूप में अभिज्ञात करते हैं। 2. तापमान : विकिरण 3. इंद्रिय या स्पर्श - गोचरता की तीव्रता ऊर्जा स्तर ( परमाणुओं के संयोग के नियम खंड 45 में दिये गये हैं। ये नियम पाउली के अपवर्जन नियम के समान हैं ।) कार्य परमाणु और कारण परमाणु = कण और प्रतिकण (जी. आर. जैन इन कणों को क्रमशः इलेक्ट्रॉन और पोजिट्रॉन कणों के रूप में अभिज्ञात करते हैं । इस सम्बन्ध में कुछ अन्य समीक्षायें निम्न हैं: 1. कुछ प्रकरणों में चरम कण (परमाणु) का कणिका के रूप में व्यवहार करते हैं और कुछ प्रकरणों में ऊर्जा (तरंग) के रूप में । Jain Education International 2. चरम कणों की गति और अवस्था से सम्बन्धित गुण प्रायिक होते हैं और हाइसेनवर्ग के अनिश्चायकता के सिद्धान्त को प्रतिबिम्बित करते हैं। 3. चरम कणों को गतिमान अवस्था में न तो कोई बाधित कर सकता है और न ही उनकी गति अवरुद्ध हो सकती है। यह नियम उनके स्कंध रूप में होने पर लागू नहीं होता। इस प्रकार चरम कण न्यूट्रिनो (या संभवतः टेकियॉन) के समान होता है जिनकी गति फोटान से अधिक होती है I उपरोक्त चार प्राकृतिक बलों के अनुरूप चार प्रकार के क्षेत्रों के अतिरिक्त शैल्ड्रेक (1981) ने आकृतिगत अनुनाद के अनुरूप 'आकृतिक क्षेत्र (मोर्फिक फील्ड) का सिद्धान्त भी प्रस्तावित किया है। जैन विज्ञान कर्म - क्षेत्र पर विश्वास करता है। इसमें काल और आकाश के चार सामान्य आयाम हैं । लेकिन कुछ नवीन सापेक्षतावाद के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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