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________________ 104 स्वाख्यातत्त्व : स्वकृत / स्वयंकृत संकल्पित कठिनाइयों (क्षुधा, तृषादि वाईस) के प्रति सहनशीलता / कष्ट की अनुभूति न करना । सम्यक् चारित्र : बुद्धिसंगत आचार / तप परीषह - जय 5. ध्यान आर्तध्यान रौद्रध्यान धर्म ध्यान शुक्ल ध्यान : जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ एवं धर्म 6. रत्नत्रय (तीन रत्न) सम्यक् - दर्शन सम्यक् - ज्ञान सम्यक् चारित्र : : : हिंसादि कार्यों पर आनंदानुभूति का चिन्तन वस्तु स्वरूप या धर्मों पर एकाग्र चिन्तन समाधि, सगुण निर्गुण ध्यान : : : चित्त को एकोन्मुखी बनाना इष्ट वियोग / अनिष्ट संयोग के प्रति चिन्तन Jain Education International सत्य अंतर्दृष्टि, बुद्धिसंगत विश्वास / श्रद्धा बुद्धिसंगत ज्ञान, सच्चा ज्ञान बुद्धिसंगत आचार / तप / आत्म-संयम टिप्पणियां 1. पी. एस. जैनी; पेज 252-53 धर्म ध्यान अल्प समय (48 मिनट तक ) के लिये निम्न अनेक विषयों में से एक के विषय में गहन चिन्तन को समाहित करता है : (1) नौ तत्त्वों के विषय में जिन भगवान के उपदेशों और उन्हें कैसे दूसरों को अच्छी तरह संप्रसारित किया जाय (आज्ञा-विचय) । (2) कषाय और अज्ञान के कारण पथभ्रष्ट एवं मन - भ्रष्ट प्राणियों के दुःख और उस दुःख से उन्हें कैसे बचाया जाय (अपाय - विचय) (3) कर्मों के आस्रव, बंध, स्थिति एवं परिणामों की रहस्यात्मक क्रियाविधि पर विचार तथा इस पर विचार कि आत्मा मौलिक रूप से इन प्रक्रियाओं से मुक्त है और वह इन प्रक्रियाओं से स्वयं को मुक्त कर सकता है (विपाक - विचय) ( 4 ) लोक की रचना तथा उन कारणों पर विचार जिनसे आत्मा विभिन्न गतियों में चक्कर लगाता है ( संस्थान - विचय) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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