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________________ 101 शुद्धिकरण के उपाय चित्र 8.3 में कार चालक में चारों कषायों की अभिव्यक्ति को प्रदर्शित किया गया है। तीन गुप्तियों का अर्थ है - मन, वचन और काय की प्रवृत्तियों को संयमित करना जिससे व्यक्ति बिना विचारें ही अपनी सहज प्रवृत्ति के अनुसार काम करे। सातवें गुणस्थान में समितियों (सावधानियों) की पूर्णता होती है अर्थात् आवश्यकतानुसार कार में लगे दर्पणों, सूचकों, प्रकाश-दीपों तथा अन्य उपकरणों का उपयोग करने में दक्षता आती है जिससे किसी दूसरे चालक व्यक्ति को बुरे चालन की चिंता न रहे और दुर्घटना की कोई संभावना न रहे। साथ ही, चालक प्रति समय सावधान रहता है जिससे वह दूसरों के बुरे चालन या अन्य कारकों के कारण सही सावधानी ले सके। आठवें से बारहवें चरण में कार के चालन में कषायों का अल्पीकरण या वियोजन समाहित होता है। इन कठिन दोषों का दूर करना सरल नहीं है, क्योंकि इनमें नियमानुसार अधिकतम गति से कम गति पर चलने के बावजूद भी लम्बे यातायात अवरोधों में व्यग्रता और बारबार पीछे की कारों द्वारा आगे निकल जाने के कारण असहजता आ जाती है। ये कषायें उग्र होती हैं और कभी-कभी ही उत्पन्न होती हैं क्योंकि इनको सामान्यतः नियंत्रण में रखा जाता है। तेरहवें चरण में चालक ऐसे स्तर पर पहुंच जाता है जिससे मार्ग पर न्यूनतम संकट की ही संभावना रहती है। चौदहवें चरण में क्रिया के निरोध की स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें व्यक्ति यह सोचता है कि कार के बिना काम चलाने में कोई संकट नहीं है। यहां यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब उसका इंजिन काम नहीं कर रहा है, तब उसमें कोई क्रिया नही होती अर्थात् उसमें कोई योग नहीं है। यहां यह भी स्मरण रखना चाहिये कि यह उपमा पूर्ण उपमा नहीं है। इस अनुरूपता के माध्यम से हम पांच समितियों के उपयोग को भी निदर्शित कर सकते हैं। पहली समिति-ईर्या समिति (आवागमन में सावधानी) ऐसा कार–चालन जिसमें रास्ते पर चलने वाले पशु-पक्षी आदि को चोट न लगे। दूसरी वचन-समिति है जो कार चलाते समय कम-से-कम बात करने के समकक्ष है जिससे हमारा ध्यान दूसरी ओर कम-से-कम जाये। तीसरी समिति एषणा-समिति है जो मद्य-सेवन आदि के बिना कार चलाने के समकक्ष है जिसमें हमारा ध्यान सदा कार चलाने पर ही केंद्रित रहता है। चौथी समिति आदान-निक्षेपण समिति है जो कार चलाने के पूर्व उसकी जांच-पड़ताल कर लेने एवं कार को रखने के लिये ऐसे स्थल को खोजने के समकक्ष है जहां बच्चों या पशुओं को आघात न लग सके। अंतिम समिति व्युत्सर्ग समिति है जो सीमित जगह में कार के इंजिन न चलाने के समकक्ष है जिससे पास-पड़ोस के लोग बहिर्गमित गैसों से प्रभावित न हो सकें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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