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________________ 100 जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला 4. दूध को ठंडा करना मन को शांत करना (ध्यान) जामन (कल्चर) सम्यक्-ज्ञान प्राप्त करना मिलाना दूध को जमाने के मौन धारण करना (सम्यक्-चारित्र) लिये छह घंटे (या रातभर) रखना मक्खन प्राप्त करने के ध्यान के प्रगत रूपों का अभ्यास लिये मथना या विलोना (चन) मक्खन को गर्म कर अग्नि = प्रगत शुक्ल ध्यान या समाधि घी प्राप्त करना घी = शुद्ध आत्मा 7-11 12 चौदह गुणस्थानों के माध्यम से मनुष्य के आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया की तुलना मोटर-गाड़ी के संचालन की प्रक्रिया-सीखने तथा उसमें उत्तरवर्ती कुशलता प्राप्त करने की प्रक्रिया से भी की जा सकती हैं (मरडिया, 1981)। यहां यह ध्यान देना आवश्यक है कि इंग्लैड के परीक्षण-मानकों में प्रशिक्षण प्रक्रिया में पूर्ण दक्षता की आवश्यकता नहीं होती और, फलतः, परीक्षण में सफल होने पर भी उत्तरवर्ती कुशलता प्राप्त करनी चाहिये। फिर भी, जीवन में व्यक्ति तब तक सदैव शिक्षार्थी या शिशिक्षु ही रहता है जब तक उसे मोक्ष प्राप्त न हो जाये। गुणस्थानों के प्रथम चार चरण, 1-4, मोटरगाड़ी के सही उपयोगों को जानने और समझने के समान हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि हम मात्र यह जानें कि मोटर तो न केवल एक प्रशंसनीय यातायात का साधन है, अपितु हम यह जानें कि यह एक उपयोगी यंत्र है जिसे इस प्रकार चलाना चाहिये जिससे न तो चालक को और न उसमें बैठे अन्य व्यक्तियों को ही कोई खतरा उत्पन्न हो सके। कोई भी व्यक्ति, जो उक्त धारणा में विश्वास करता है और उसे प्रायोगिक रूप दे सकता है, वह इंग्लैड के मोटर चालन के परीक्षण में सफल हो सकता है। तथापि, अच्छा मोटर चालक बनने के लिये चालन-क्रिया में उसे उत्तरवर्ती अभ्यास से विकास करना होगा। यह प्रक्रिया साधु-मार्ग को ग्रहण करने की प्रक्रिया के समकक्ष माननी चाहिये। पांचवें और छठवें चरण में पूर्ण संयम का अभ्यास किया जाता है अर्थात् कार–चालक कार को नियंत्रण में रखता है, पर उसे अचानक तेज चलाने, कठोरता से ब्रेक लगाने या कार के प्रकाश-दीपों (कार-लाइट) को अधिक चमकाने या अनावश्यक भोंपू बजाने आदि बातों को टालना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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