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________________ शुद्धिकरण के उपाय 91 11 - । ० । ० । ० । । ० छठे गुणस्थान की ओर परिवार-त्याग या उद्दिष्ट त्याग अनुमति त्याग (गृह कार्यों में निर्देशन का त्याग) परिग्रह त्याग (संपत्ति का वितरण/त्याग) आरम्भ त्याग (गृह कार्यों से विरति) ब्रह्मचर्य (मैथुन विरति) रात्रि भुक्ति त्याग/ दिवाभुक्ति-विरमण भोजन में शुद्धि/सचित्त त्याग पौषघोपवास (पवित्र दिनों में अनशन/उपवास) सामायिक (समत्व का अभ्यास) व्रत (स्थूल व्रतों का पालन) - दर्शन (सही दृष्टिकोण) चौथे गुणस्थान से चित्र 8.1 पांचवें गुणस्थान से सहचरित श्रावक के लिये त्याग के ग्यारह आदर्श चरण (प्रतिमायें) । । - No - इन ग्यारह उप-चरणों अंतिम चरण, उच्चतर चरण या साधु अवस्था के लिये तैयारी के चरण के रूप में माना जाता है। महात्मा भगवानदीन ने बताया है कि ये उप-चरण मूलतः स्व-लक्षी हैं, पर ये व्यक्ति-आधारित समाजोन्नति के आधार भी हैं (भगवानदीन, 2000)। 8.4 छठवां गुणस्थान और साधु छठवें गुणस्थान में उच्चतर कोटि के व्रतों या महाव्रतों का पालन करना पड़ता है जिनमें कठोरतर तपस्यायें समाहित होती हैं। ये पूर्वोक्त 1-5 प्राथमिक व्रतों के विस्तार और संयोजन हैं और इनमें, विशेषतः परिग्रह-त्याग और गृहस्थ जीवन का पूर्णतः त्याग महत्त्वपूर्ण है। इन व्रतों का समग्र उद्देश्य विविध प्रकार की क्रियाओं की सीमा और वारंवारता को अल्पीकृत करना है जिनसे नवीन कषायों के कारण अतिरिक्त कर्म-पुद्गलों का बंध होता है। __अब हम साधु की आवश्यक चर्या (देखिये 8.1) का विस्तृत विवेचन करेंगे। ये अभ्यास साधक को प्रगत ध्यान की अवस्था में पहुँचने के लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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