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________________ का कथन किया है | स'वर के होने पर निर्जरा होती है । मोक्ष अत में होता है । इसलिए उसका अत में कथन किया है। अथवा क्योंकि यहाँ मोझ का प्रकरण है इसलिए उसका कथन करना आवश्यक है । वह संसार पूर्व क होता है और संसार के प्रधान कारण आस्नव और बध हैं तथा मोक्ष के प्रधान कारण संवर और निर्जरा हैं । अत प्रधान हेतु, हेतुबाले और उनके फल के दिखलाने के लिए अलग-अला उपदेश किया है । (जैन सि. को. पृ. ३५३-५४) संक्षिप्त में इन तत्वो को समझे । जीवतत्व : संसार या मोक्ष दोनों में जीव प्रधान तत्व है । यद्यपि ज्ञान दर्शन स्वभावी होने के कारण वह आत्मा ही है फिर भी संसारी दशा में प्राण धारण करने से जीव कहलाता है । वह अनन्तगुणों का स्वामी एक प्रकाशात्मक अमूर्तिक सत्ताधारी पदार्थ है । कल्पना मात्र नही है नही पचभूतों के मिश्रण से उत्पन्न होने वाला कोइ संयोगी पदार्थ है ।...कोई एक ही सर्वव्यापक जीव भी हो ऐसा जैन दर्शन नहीं मानता। वे एन तानत हैं। उनमें से जोभी साधना विशेष के द्वारा कर्मो' व संस्कारों का क्षय कर देता है वह सदा अतीन्द्रिय आनन्द का भोक्ता परमात्मा बन जाता है |...जैन दर्शन में उसी को ईश्वर या भगवान स्वीकार कया है । (जौ सि. को. पृ. ३३०) जीव के स्वरुप को लेकर अनेक आचायों ने व्याख्या में प्रस्तुत की हैं जिनका सार रूप कथन यही है कि जो चार प्राणां से जीता है, जियेगा और पहले जीता था वह जीव है। यह जीव रस, रुप, गध रहित, इन्द्रियों से अगोचर, चेतना गुण वाला, शब्द रहित एवं आकार रहित होता है। उपयोग और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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