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________________ (८) उपशम : उपशम अर्थात् कर्म को उपशांत करना । उदित कर्म को स्माछन्न अग्नि की तरह दबा देना-उपशमना है । उप शणम अवस्था में उदय-उदी'णा नहीं होता । साथ ही स्क्रमण, आकर्षण मा अपकग एव निधति निकाचन नहीं होता । ये सब सोपशमना कर्म संबद्ध से हैं । सरल शब्दों में कहें तो कम को उदय में आ सकने के आयोग्य बना देता है । (९) निधत्ति : कर्म की यह ऐसी सख्न अवस्था है कि जिसमें कम का सक्रमण और उदीर गा नही हो सकती । पर'तु कर्म का उत्कर्ष या अपकर्षण हो सकता है । (१०) निकाचना : यह कर्मवध की सर्वाधिक कठिन या सख्त अवस्था है जहाँ उदोरणा, संक्रमण, उत्कपण या अपकर्षण किसी भी क्रिया नहीं चल सकती । इममें उदित कर्म का प्रायः भोगना ही पड़ता है। कम के इस शिद्धांत को समझ लेने पर हम इतना जान ही सकते हैं कि व्यक्ति अपने किए हुए कमों का फल स्वय भोगता है । ये कर्म ही उसे जन्म जन्मातर भटकाते हैं । इनसे छूटने पर या मुक्त होन पर ही मोक्ष या अजन्मापने का सुख प्राप्त हो सकता है। समाजकी व्यवस्था के लिए भी सत्कम आवश्यक हैं । बुरे कर्मों के परिणाम, बुरे कपटदायी एवं आत्मघातक होते है ऐसा ज्ञान जिसे जागृत हो जाये वह गलत काय", अन्यको दुःखी करने वाले कर्मों से बचेगा । कषायों से बचेगा । पुण्य बध द्वारा उत्तम गति प्राप्त करेगा । एक दिन इन कर्मों से संपूर्ण मुक्त बनकर 'मुक्तारमा बन सकेगा। ध्यान रहे कि हम जो कम करेंगे उसका फल भी हमें ही भोगना है । उन्ही के अनुसार शरीर. बुद्धि, शक्ति, सम्पति सुख-दुःख प्राप्त होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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