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________________ एव जब कर्म फल दिए बिना ही नष्ट हो जाते हैं उसे प्रदेशोदय कहते हैं। (६) उदीरणा : 'आबाधकाल' पूर्ण होने पर उदित कम का नियत कालानुसार क्रमिक उदय होना उदय है । पर, समय से पूर्व कम का विपाक हो जाना उदीरणा है । उदाहरणार्थ-आम को समय से पूर्व पकने के लिए डाल से तोड. कर भूसे या घास में दबाकर रखा जाता है । इस प्रकार वह समय से पूर्व जल्दी पक जाता है इसी प्रकार कम की भी अपकषण करण के द्वारा स्थिति घट जाती है । स्थिति के घटने से कर्म नियत समय से पूर्व उदय में आते हैं । यह समय से पूर्व को कर्मोदय ही उदीरणा : है । जैसे किसी की असमय मृत्यु को हम अकाल मृत्यु कहते हैं । हकीकत में यह आयुकम की उदीरणा ही है । (७) संक्रमण : एक कर्म प्रकृतिका अन्य सजरतीय कर्म रुप में हो जाने को सक्रमण क्रिया या संक्रमण करण कहा गया है । ध्यान रहे कि संक्रमण कम के मूल भेदों में नहीं होता अर्थात मूलकर्म अन्य कर्मो में परिवर्तित नहीं हो सकते । यह संक्रमण मात्र कर्मों के अवान्तर भेदों में ही होता है । जैसे ज्ञाना वरणी कर्म दर्शनावरणी में संक्रमण नहीं करेगा परतु वेदनीय कम के सात वेदनीय कर्म असातवेदनीय या सातवेदनीय में संक्रमण कर सकता है यद्यपि इसमें भी एक अपवाद है जैसे आयु कम के चार प्रकारों में परस्पर संक्रमण भी नही होता । जैसे, नकरगति की आयु से आबद्ध जीव को नकरगति में ही जाना पडेगा । इसी प्रकार मोहनीय कम के अवान्तर भेद दर्शन मोहनीय और चारित्र्य मोहनीय कम परस्पर संक्रमित नहीं हो सकते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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