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इस पुस्तक के द्वितीय संष्कारण को प्रकाशन इस तथ्य का प्रतीक है कि पुस्तक आप लोगों का उपयोगी लगी । यही मेरा सबसे बड़ा संतोष हैं ।
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इस पुस्तक में जो भी उत्तम है वह शास्त्रों का दोहन है और जो भी त्रुटियों हैं वे मेरी अल्पबुद्धि के कारण हैं । मैने प्रारंभ ही इन शब्दों से किया हैं
"अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास धाम.
पर जिनेन्द्र देव का परोक्ष मुनिवरोंका प्रत्यक्ष आशीर्वाद एवं आप सबकी सद्भावना मुझे इस प्रस्तुतिकरण के लिए वाचाल बनाती रही | प्रभु से प्रार्थना है कि ऐसी वाचालता बनाये रहे ।
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- डॉ. शेखरचंद जैन
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