SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आरूढ़ होगा - वह मानसिक शांति, संतोष एवं सरलता को अवश्य प्राप्त करेगा | एक बार प्रयोग तो कीजिए । तीर पर - खड़े होकर माती कैसे मिलेंगे ? गोता लगाइए... जीवनका मोह छोड़कर जल में डूविए मोती अवश्य पायेंगे । इस पुस्तक से नई बात दे रहा हूँ ऐसा मेरा कोई दावा नहीं, और इसमें मेरी विद्वता है यह कहने का भी मेरा अधिकार नहीं है । परंतु सरलता से कहने का प्रयास अवश्य मेरा श्रम है । वर्तमान युग में लिखना तो थोडा सरल है, पर प्रकाशन कठिन कार्य हो गया है । लेखक अधिक परेशानियों के कारण प्रकाशन कैसे कराये ? पर, धर्म की श्रद्धा मार्ग निकाल ही देती हैं । प्रथम संस्कारण अहमदाबाद में १९८४ में सम्पन्न गजरथ महोत्सव समिति की प्रेरणा व आंशिक आर्थिक सहयोग से हुआ था । कृति का विमोचन शास्त्री परिषद के अधिवेशन में श्रेष्ठीवर्य श्री निर्मलकुमार श्री शेठी के करकमलों से स्व. पं. बाबूलालजी जमादार, डॉ. लालबहादुरशास्त्री एव गुजरात के पूर्व गृहमंत्री श्री प्रबोधभोई रावलको उपस्थिति में हुआ था । द्वितीय संस्करण के प्रकाशन में सन १९९० में उदयपुर में एव' १९९१ में अहमदाबाद के हाटकेश्वर में श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आयोजित पर्यूषण व्याख्यान के स्मृति स्वरूप है । पुस्तक में समाहित विषय आम जिज्ञासुओं को जौनधर्म को प्रारंभिक ज्ञान एव नित्य नियम क्रियाओं का ज्ञान प्रदान करता है । इस आवश्यकता का ध्यान में रख दोनों स्थानों (उदयपुर - अहमदाबाद ) के धर्मप्रेमियों ने इस ज्ञान प्रसार हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान किया । अतः इन सबका अन्तःकरण पूर्वक आभारी हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy