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________________ बढ़ सकेगा । आज के भयभीत विश्व में युद्ध और हिंसा की विभिपिकाओ में जीने वाले विश्व को जौनधर्म की अहिंसा अप. रिग्रही त्राण दिला सकते हैं । अहीसा अमेधि शस्त्र है यह मात्र कथन की बात नहीं हैं, पर प्रयोगसिद्ध तथ्य है। महात्मागांधी इसी से इतनी बड़ी हिंसात्मक सत्ता को अहिंसा के शस्त्र से पराजिल का सके और पराजित भी दुश्मन नहीं परंतु दोस्त बनकर किये। जीवन से हिंसा को दूर करने के लिए हमें मन को बांधना होगा । उसको बाह्य भटकाव से अन्तर्मुखी बनाना होगा । कृत्यों और प्रवृति बों पर संयम की लगाम लगानी होगी। इसके लिए हमे ध्यान द्वारा केन्द्रो और नाड़ीतांत्र पर नियंत्रण करना होगा । संतुलन स्था-- पित करना होगा । युवाचार्य महाप्रज्ञ की भाषा में प्रेक्षा ध्यान द्वारा कलुप रहित होना होगा । श्वास पर नियंत्रण करना होगा । मनो.. विज्ञान की भाषा में मन के भीतर उतरकर मूल में जो कुभाव हैं उसमें आमूल परिवर्तन करने हेांगे । अहिंसा वा पालन अर्थात् निर्भपता में जीना, सत्य बोलना अपरिग्रह का स्वीकार होगा । अहिंसक की वाणी में सत्य होगा, आचाण में क्षमा होगी और जीवन में समता, सरलता, सहृदयता, करुणा होगी। फिर उसे इन्द्रियां विवश न करेंगी और बाह्यभय आसक्त नहीं करेंगे । ऐसा व्यक्ति साधक सुख अवस्था में पहुंचकर सारी कलुषता से मुक्त होकर केवल ज्ञान तक उर्ध्व गमन कर सोगो । यह अहिंसा का ही प्रभाव होता है कि शमवशरण में परस्पर जन्मजात दुश्मन जीव भी एकसाथ प्रेम से बैठते हैं । . अहिंसक व्यक्ति की भाषातरंगे उत्तरोत्तर परिमार्जित हो जाती हैं । दूसरे शब्दों में उसकी अशुभ लेश्यायें शुभ में परिवर्तित हो जाती हैं । उसका आभामंडल जगमगाने लाता है। व्यक्ति के लिये, समाज के उन्नयन और विश्वशांति के लिए अहिंसा ही एकमात्र उपाय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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