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________________ भक्तिकालीन सूफी कवि मलिकमोहम्मद जायसीने अपने प्रसिद्ध महाकाव्य पदमावत में सिंहलद्वीप का वर्णन करते समय दिगंबर जैन मुनियों का उल्लेख किया है । प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता श्री इ. आई. थोमम अपनी पुस्तक 'धी लाइफ ओफ धी बुद्ध में लिखते हैं कि सिकदर ने जैन सूफी साधु ओं से मुलाकात की थी । वह उनके असीम धैर्य एव सहनशीलता से प्रभावित हुआ था । कृषि युग के साथ ही भ. ऋषभ ने लिपि की खोज की थी । उनकी पुत्री ब्राह्मी के नाम पर ब्राह्मी लिपि का नाम करण हुआ था उसी से स्वर, व्यंजन, गणित, पदविद्या, छौंदशास्त्र आदि का श्री गणेश माना गया है । इस प्रकार के उल्लेव पुरदेव-चंपू, आदिनाथ चरित्र आदि ग्रंथों में हैं। नाटयशास्त्रकार भरतमुनि भी ग्रंथ के प्रारंभ में नाटक की जननी ब्राह्मी को प्रणाम करते हैं। श्री स्व. दिनकर जी भी स्वीकार करते हैं कि ऋषभदेव ने १८ प्रकार की लिपियों का आविष्कार किया था । इन सारे साक्ष्यों के आधार पर जैनधर्म या श्रमण संस्कृति की प्राचीनता एव महत्ता का परिचय मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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