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________________ हिन्दी विश्वकोष में उल्लेख है कि बेजके दिमन मठ में से एक रशियन पर्यटक ने पालि भाषा में लिखित एक ग्रंथ खोजा था । उस ग्रंथ में यह उल्लेख है कि ईसाने भारत तथा अन्य देशों में अज्ञातवास किया था । उस समय जैन साधुओं से उनका साक्षात्कार हुआ था। - वीर सावरकर इस धर्म की प्राचीनता का स्वीकार करते हुए कहते हैं कि भारत ही जैन धर्म की जन्मभूमि है । वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वैदिक धर्म व श्रमग धर्म एक ही आर्य पर परा के साथ आबद्ध थे। तरीय आरण्यक, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद भागवत, गैराग्य संहिता, महाभारत, जैसे महानग्रंथों में जो उल्लेख हैं उनसे यह सिद्ध होता है कि जैनधर्म का उस युग में पर्याप्त विकास हो चुका था । नग्न जैन मुनि उस समय विहार करते थे और राजा जनक के यहां आहार के लिए जाते थे । स्कंधपुराण में जैनमुनियों को नान एव मयूरपिच्छ धारी कहा गया है। महाभारत में उनका अभय त्यागी के रुप में उल्लेख है। _ इस प्रकार जैन-जनेतर अंथो में वगित वर्णनों से जैनधर्म की पौराणिकता एवं ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला गया है जो द्वेषबुद्रिवालों को सत्य को परखने में सहायक सिद्ध होंगे। इन कथनों से यह कहा जा सकता है कि वाल्मीकि अर्थात राम के युग में जैनधर्म प्रचलित हो गया था । नग्न जैन माधू निर्विन विहार करते थे । जनक जोसे राजाओं के यहां वे समादरगौन थे । त्याग साधना, उपासना, शुद्ध सात्विक आहार-विहार के कारण समाज में उनका आदरणीय उरूच स्थान था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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