________________
प्रकरण आठवाँ
५४
धंधे में अनर्थ नजर आया तो, उन्होंने इसे छोड़ शास्त्र-लेखन कर्म शुरू किया,पर यह तो इन्होंने भी कहीं नहीं बताया कि लौंकाशोह विद्वान् थे। फिर यह समझ में नहीं आता कि इतना कुछ होने पर भी, (बिना कुछ प्रमाणों के) झूठ मूठ हमारे स्थानक मार्गी भाई, श्रीमान् लौकाशाह पर यह अनर्थ क्यों गढ रहे हैं कि वे महाविद्वान् थे। यदि कभी लौंकाशाह स्वयं स्वर्ग से उतर पड़े, और इस सुधार प्रिय नई रोशनी के स्थानक मार्गियों से पूछ बैठे कि अरे! साधुओं! व्यर्थ मुझे सभ्य संसार में क्यों हँसी का पात्र बना रहे हो । कब मैंने विद्वत्ता का काम किया ? या कोई पुस्तक
आदि की रचना की ? जो तुम मुझे उनके आधार से विद्वान् बताते हो ? मैं तुम्हारी इस झूठी प्रशंसा से जरा भी प्रसन्न नहीं किन्तु अतिशय अप्रसन्न हूँ। क्योंकि मिथ्या स्तुति प्रकाराऽन्तर से कलङ्क का ही कारण है। आगे से ऐसी झूठी प्रशंसा कर मेरे पर कलङ्क न लगाओ, एतदर्थे सावधान करता हूँ। तो आप इसका क्या जवाब देंगे। ___ कई एक स्थानक मार्गियों का यह भी मत है कि लौकाशाह ने अपने हाथों से ३२ सूत्रों की नकलें की थी ?। संभव हैसुन्दर अक्षरों की योजना भी शायद ! इसी की पूर्ति के लिये की जाती हो ? क्योंकि बिना अक्षर लिपि के सुधरे; क्या कोई खाका! नकल कर सकेगा ?। परन्तु यह कल्पना भी अब थोथी प्रमाणित हो चुकी है। क्योंकि स्वामी मणिलालजी ने अपनी प्रमुवीर पटावली में लौकाशाह द्वारा ३२ सूत्र लिखी जाने वाली बात को भी मिथ्या घोषित करदी है, जिनका पूरा विवेचन अागे के प्रकरणों में होगा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org