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________________ २० प्रकरण तीसरा स्वामी जेठमलजी के बाद प्रायः १०० वर्षों में किसी भी स्थानकमार्गी ने लौकाशाह का नाम तक नहीं लिया, पर इस बोसवीं शताब्दी में फिर लौकाशाह की आवश्यकता हुई और श्रीमान् वाडीलाल मोतीलाल शाह ने वि० सं० १९६५ में एक "ऐतिहासिक नोंध" नाम की किताब लिख सोते हुए स्थानक मार्गी समाज को जागृत किया । जमाने ने फिर रंग बदला । श्रीमान् सन्तबालजी ने शाह की ऐतिहासिक नोंध में मनगढन्त सुधार कर अपने नाम से "श्रीमान् धर्मप्राण लौंकाशाह" नाम की लेखमाला लिखकर 'जैन प्रकाश' पत्र में प्रकाशित करवाई पर श्री मणिलालजी को वह भी पसन्द नहीं आई। आपने कुछ भाग ऐतिहासिक नोंध से; और कुछ भाग तपागच्छीय यति कान्तिविजयजी लिखित दो पत्रों से संगृहीत कर अर्थात् इन दोनों के मिश्रण से और कुछ फिर अपनी नयी कल्पना से प्रभुवीर पटावली" में लौंकाशाह का एक निराले ढंग पर जीवन चरित्र छपवाया। अब फिर न जाने भविष्य में इसमें भी कितने सुधारक क्या क्या सुधार करेंगे ? वस्तुतः निष्पक्ष हो ऐतिहासिक दृष्टि से यदि देखा जाय तो इन सब लेखकों के पास प्रमाणों का तो पूरा अभाव ही है। जिसे हम इन्हीं समाज के विद्वानों के वाक्यों को यहाँ उद्धृत कर दिखाते हैं। पाठक तथ्याऽतथ्य का निर्णय करें। यथास्थानक० साधु मणिलाल जी___"x x x इतिहास लखवानी प्रथा जैनोमां + यह पुस्तक हाल ही में प्रकाशित हुई है। जिसको स्था० समाज अप्रमाणिक होना घोषित कर दिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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