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प्रकरण पहिला
लौकाशाह न तो स्वयं विद्वान् था और न आपके समकालिन कोई आपके मत में ही विद्वान् हुआ । यही कारण है कि लोकाशाह के समकालिन किसी लौकाशाह के अनुयायी ने लौकाशाह का जीवन नहीं लिखां इतना ही नहीं पर लौंकाशाह के अनुयायियों को यह भी पता नहीं था कि लौकाशाह का जन्म किस ग्राम किस कुल में हुआ था, किस कारण से उन्होंने संघ में छेद भेद डाल नया मत खड़ा किया तथा लौकाशाह के नूतन मत का क्या सिद्धान्त था इत्यादि।
यदि लौकाशाह के अनुयायी लौकाशाह के विषय में भाज भी कुछ जानते हैं तो परम्परा से चली आई किंवदन्ति के आधार पर इतना जानते हैं कि:
"लौकाशाह एक साधारण स्थिति का जैन गृहस्थी था और वह पहले नाणवटी (कोडी टकों की कोथली) का धंधा करता था। बाद जैन यतियों के उपाश्रय सूत्रों का उतारा (नकल) कर अपनी आजीविका चलाता था, शास्त्रों को लिखने से तथा यतियों के विशेष परिचय से लौकाशाह को यही मालुम हुमा
* जैन शास्त्र मूल अर्धमागधी, भोर टोका संस्कृत में है। इस भाषा से तो लौकाशाह अज्ञात हो था और इस प्रकार का ज्ञान केवल लिखने मात्र से हो नहीं सकता है क्योंकि जिन लेखकों ने जैन शाल लिखने में हो अपना जीवन पूरा किया है। उनसे पूछने पर इसका पता चल सकता है कि शास्त्राऽन्त निहित उपदेश भौर जैन सिद्धान्त का उन्हें कुछ भी बोध नहीं है। लेखकों का काम तो कापी टू कापी करना है, उनका मनन करना नहीं भतः सिवाय वे लिपि ज्ञान के क्या (अधिक) ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ? यही हाल होकाशाह का था।
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