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पंजाब की पटावकि
कल्पना का ढांचा तैयार किया है फिर भी मजे की बात तो यह है कि ( ५७ ) का पाट वि० सं १४०१ (५८) पाट १४२७ (५९) पाट १४७१ (६०) पाट १५०१ का समय बतलाया गया है कि अंध परम्परा वाला कोई शंका भी न कर पावे । पर साथ में हमारे स्थानकवासी भाई इतनी कृपा करते कि इन १०० वर्षों में चार श्राचार्योंने अमुक अमुक ग्रन्थों की रचना की या दूसरा कोई भी कार्य किया ताकि जनता को इस कथन पर कुछ विश्वास रहता जैसे कि आचार्यविजयचन्द्रसूरि से आचार्य ज्ञानसागरसूरि (यतिज्ञानजी) तक के समय में जो श्राचार्य हुए और उन्होंने प्रन्थ रचना की के उल्लेख मिलते हैं, इतना ही क्यों इन तीन शताब्दी में जैनाचार्यों के निर्माण किये हुए सैकड़ों ग्रंथ शिलालेख आज भी उपलब्ध हैं पर पंजाबपटावली कराके चार आचार्यों के समय (वि.सं १४०१ से १५०१ ) तक के भी जैनाचार्यों के अनेक प्रन्थ व शिलालेख मिल सकते हों तो फिर इन स्थानक - वासियों के माने हुए १००० वर्षों के श्राचार्यों (देवद्धि से ज्ञानजी का इतिहास क्षेत्र में पता तक भी नहीं मिले यह कितने दुःख और आश्चर्य की बात है !
आगे चलकर हम पंजाब की पटावलि और स्वामी मणिलालजी की पटावलि के नामों को तुलनात्मक दृष्टि से देखते हैं। तो उसमें भी एक दो नाम तक भी नहीं मिलते हैं अतएव यह बिना संकोच और निशंकतया कहना चाहिये कि लौंकाशाह पूर्व की जो पटावलि पंजाब व कोटा समुदाय तथा स्वामी मणिलालजी ने छपवाई है वह बिलकुल कल्पित और बिचारे भोले भाले स्थानकमार्गियों को धोखा देने के लिये ही बनाई है इससे न तो
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