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________________ ( ३२ ) श्रीमान संतबालजो का प्रश्न । जैन प्रकाश अखबार ता० १०-११-३५ पृष्ट ३० पर आप प्रश्न करते हैं कि "धर्ममाण लौंकाशाहे शु कार्यु ?" फिर ता. १७-११.३५ पृष्ट ४२ पर श्राप लिखते हैं कि "धर्ममाण लौकाशाहे शु कार्यु ?" पुनः ता० २४-११-३५ पृष्ट ५४ पर सवाल करते हैं कि "धर्मप्राण लौकाशाहे शु कार्य ?" । और ता०८-०२-३५ पृष्ट ७८ श्राप बयान करते हैं कि धर्मप्राण लौंकाशाहे शु कार्यु ?" फिर ता० १५-१२-३५ पृष्ट ९० पर श्राप प्रश्न करते हैं कि "धर्मप्राण लौकाशाहे शु कार्यु ?" फिर, ता० २२-१२-३५ पृष्ट १०१ पर पुछते हैं कि "धर्मप्राण लौंकाशाहे शु कायु ?" फिर ता० ६-१-३६ पृष्ट १२४ पर प्रश्न करते हैं कि धर्मप्राण लौंकाशाहे शु कार्य ?" फिर ता० १३-१-३६ पृष्ट १३८ पर प्रश्न करते हैं कि___"धर्मप्राण लौंकाशाहे शु कार्यु " एक व्यक्ति प्रश्न करे, उसका उत्तर कोई दूसरा व्यक्ति ही दे सकता है न कि स्वयं प्रश्न करना और स्वयं ही उत्तर लिखना। अतएव दूसरा किसी को उत्तर देता न देख मैने आप श्रीमान् के उपरोक प्रश्नों के उत्तर में यह किताब लिखी है शुभम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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