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तसकर वृत्ति का नमूना
क्या
द्वारा तलवार रखने का तथा कत्ले आम करने का लिखा है, यही आपका अहिंसाधर्म है ? तो शाह को शर्म के मारे शिर नीचा करना पड़ेगा जैसा कि आज ऐसी रही पुस्तकों की श्रावृत्तिएँ छपवाने वालों को करना पड़ता है । मैंने भी इस पुस्तक को समालोचना के लिए हाथ में लिया है किन्तु इस पुस्तक स्पर्श रूपी दोष के निवारण के लिए प्रायश्चित्त करना चाहता हूँ । × × खैर ! इससे आगे चलकर शाह अपनी ऐ० नों० के पृष्ठ १३९ पर लिखते हैं
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पाट सोमजी बैठे । वे एक वार बुरानपुर के रङ्गरेज ने किसी यति की खटपट से लड्डू बेहरा दिए और उनके प्राण
"कि लवजी के पास गए। वहां एक उन्हें जहर मिले हुए हरण किए ।”
रंगरेज तो प्रायः मुसलमान ही होते हैं, और लवजी के साधु शायद मुसलमानों के यहाँ का आहार पानी भी लेते होंगे तभी तो रंगरेज ने सोमजी ऋषि को लड्डू वेहराया, और उन्हों ने वे लड्डू खाकर अकाल ही में कराल काल की शरण ली । परन्तु प्रश्न तो यह होता है कि ढूंढियों के तो मुसलमानों के साथ और भी अनेक प्रकार के सम्बन्ध है, फिर उनको जहर क्यों दिया यह इतना द्वेष किस कारण था ? कुछ समझ नहीं पड़ता । शायद मुसलमान की औरत के साथ लवजी के साधु का अनाचार करने का किस्सा बहुत नजदीक का था इसी से रंगरेज ने जातिगत अपमान के कारण सोमजी को जहर मिले लड्डू दे दिये हों तो कोई आश्चर्य नहीं । पर हमारे शाहको तो यथा तथा लौकागच्छीय
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