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________________ ऐ० नो० को ऐतिहासिकता २८२ में उल्लेख भी मिलता है जो पाठकों के पठनार्थ नीचे दिया जाता है। "संवत् सोल पचासिए, अहमदाबाद मँझार । शिवजी गुरु को छोड़ के, धर्मसिंह हुआ गच्छ वहार ॥ यह हाल तो शाह के मान्य सर्वप्रथम सुधारक धर्मसिंहजी का है । अब चारा लवजी का हाल भी सुन लीजिये: "लवजी-सूरत के वीरजी बोहरो की विधवा पुत्री फूलांबाई के दत्तक पुत्र थे । लौकागच्छीय यति बजरंगजी के पास लवजी ने यति दीक्षा ली। बाद में लवजी की अयोग्यता से (आठ कोटि वाले तो कुछ और ही आक्षेप करते हैं ) इन्हें गच्छ के बाहिर कर दिया । लवजी ने स्वयं मानसिक कल्पना द्वारा मुँहपत्तीमें डोराडाल दिनभर मुहपर मुंहपत्ती बाँधने की एक नयी रीति सोच निकाली, कई ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि शुरू में तो लवजी व्याख्यानादि विशेष समय ही मुंहपत्तो बाँधते थे जैसे कई यति लोग व्याख्यान समय बाँधते थे पर इतना विशेष कि यति लोग मुँहपत्ती को तीखुणी कर दोनों कानों के छेदों में मुंहपत्ती के कोने अटका देते तब लवजी ने इनको एक प्रकार का कष्ट समझ मुँहपती में डोराडाल मुँहपर बान्धनी शरु की बाद तो इस कुप्रथा ने इतना जोर पकड़ा कि चाहे बोलो चाहे मौन रखो पर मुँहपत्ती तो दिन भर खेंच के मुंहपर बाँधनी ही चाहिये । इस कुलिंग अर्थात् भयंकर रूप को देख के ही लोग इनको ढूढिये शब्दसे पुकारने लगे खैर लवजी अपने गुरुकी विशेष रूप में निन्दा करने लगे, क्योंकि गुरु निन्दा करने की पद्धति तो लवजी की पूर्व परम्परा से ही चली आती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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