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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
२५६ थी, परन्तु शाह ने प्रतिमा पूजन सिद्धि के भय से इसका कहीं भी उल्लेख नहीं किया।
(२) आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने दस सूत्रों पर नियुक्तिएँ बनाई थीं, और उन नियुक्तियों में शत्रुक्षय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा करने से सम्यक्त्व निर्मल होना बतलाया है । जिसे भी शाह ने छोड़ दिया।
(३) आचार्य सुहस्ती सूरि के इतिहास में आपने सम्राट सम्प्रति को प्रतिबोध कर जैन बनाया, और प्राचार्यश्री के उपदेश से सम्राट संप्रति ने भारत के बाहिर पाश्चात्य प्रदेशों में भी जैन धर्म का प्रचार किया, तथा भारतमें सवा लाख नये मन्दिर बनाए । और ६०००० जीर्ण मन्दिरों का उद्धार करवाया, इत्यादि, जिसे भी लिखने से शाह ने आनाकानी करदी।
(४) प्राचार्य वनस्वामी के इतिहास में बोधराजा जैन मन्दिरों के लिए पुष्प नहीं लाने देते थे । आचार्य वनस्वामी ने अपनी लब्धि के प्रयोग से पुष्प लाकर बोधराजा को प्रतिबोध कर जैन बनाया। इसका उल्लेख भी शाह ने छोड़ दिया।
(५) आचार्य सिद्धसेन सूरि के इतिहास में उन्होंने राजा विक्रम को प्रतिबोध दे जैन बनाया और अवंति पार्श्वनाथ का तीर्थ प्रकट किया, इसका निर्देश भी शाह ने छोड़ दिया, तथासाथ में ही सम्राट विक्रम ने श्री सिद्धाचलजी का विरासंघ निकाला, उसे भी नहीं लिखा। ___ इत्यादि-जहाँ जहाँ मन्दिर मूर्तियों का उल्लेख आता है, वहाँ वहाँ शाह ने अपने पूर्वजों की तस्कार वृत्ति का अनुकरण कर उस विषय को ही निकाल दूर फेंक दिया । हम पूछते हैं कि शाह
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