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________________ २५१ लौकाशाह का जीवन यतियों की निंदा करने लगा। उस समय आपके मित्र शैयद ( मुसलमान ) लिखारे का सहयोग मिलगया तो उस यवन के संसर्ग एवं उपदेश से लौकाशाह की बुद्धि में विकार हो पाया । यतियों का निमित्त ले, मन्दिर उपासरों से विरोध के कारण लौकाशाह ने जैन साधु, जैनागम, जैन मंदिर सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान दान और देव पूजा का बहिष्कार करते हुए, पाप-पाप, हिंसा-हिंसा आदि की पुकार कर अपना एक नया मत खड़ा कर दिया, परन्तु अहमदाबाद कोई छोटा गाँव तो था नहीं जो झट से लौंकाशाह की वहाँ तूती बोल जाती, प्रत्युत अहमदाबाद तो तत्समय में जैनों का प्रधान केन्द्र था, अतः वहाँ लौकाशाह की थोथी आवाज को कौन सुनता ? तब वहाँ से खिन्न और तिरस्कृत हो लौकाशाह अपने जन्म स्थान लीबड़ी गए और वहाँ अपने फूफी के बेटे भाई लखमसी जो वहाँ का प्रधान राज कर्मचारी था उसकी शरण जा सब हाल सुना कर अपने मन के दूषित विचार प्रकट कर दिये, तब लखमसी ने कहा कि तुम लींबडी के राज्य में बेधड़क हो अपने विचारों का प्रचार करो। परन्तु लौंकाशाह उस समय अतिवृद्ध और अपङ्ग थे अतः इतने संकुचित समय में अपने मत का स्वयं प्रचार नहीं कर सके । फिर भी भवितव्यता वश उन्हें भाण आदि तीन मनुष्य मिल गए, और लौंकाशाह को समझाया कि श्राप जो सामायिकादि क्रियाओं का विरोध करते हो यह ठीक नहीं; कारण, इनके बिना न तो श्रावकों का काम चलता है और न आपका ही मत चल सकेगा ! उस समय कालातिक्रम से लौकाशाह का क्रोध भी कुछ शान्त हो गया था, अतः भाणादि का कहना Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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