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________________ स्थानकमार्गी समाज का एक माननीय विद्वान् । श्रीमदरायचन्द्र आप राजकोट के जवेरी और बम्बई में जवेरात का व्यापार करते थे तथा स्थानकमार्गी समाज में श्राप प्रसिद्ध विद्वान भी थे, आपने शास्त्रों का गहरा अभ्यास करके अपना यह निश्चय प्रगट किया कि मूर्तिपूजाशास्त्र सम्मत धर्म का एक अंग है । साधारण जन के लिये तो उपकारी है ही पर योग्यावस्था एवं अध्यात्म श्रेणि के मुमुक्षुओं के लिये भी परमोपकारी है क्योंकि जब हम अन्यान्य साधनों । को भी उपयोगी समझते हैं तब वीतराग की शान्तमुद्रा , एवं ध्यानावस्थित मूर्ति हमारे लिये उपादेय क्यों नहीं हो सकती है ? अर्थात् मूर्ति की उपासना, जिस देव को लक्ष में रख मूर्ति स्थापित की जाती है । उसी देवकी आराधना करना उपासक का खास लक्षबिन्दु है । अतएव अध्यवसायों की निर्मलता और श्रेणि चढ़ने में मूर्ति खास निमित कारण है। श्रीमद् रायचन्द्र ने अपने निखालस हदय से स्थानकमार्गी मत को कल्पित समझ उसको त्यागकर तिज । स्वीकार । करली, इतना ही नहीं पर आपने हजारों भूले भटके हुए । को मूर्तिपूजक बनाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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