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________________ पूज्यपाद मुनि श्रीज्ञानसुन्दरजी महाराज (साधुमार्गी मुनि गयवरचन्दजी) भाप श्री का संक्षिप्त परिचय इसी प्रन्थ के आदि में दे दिया है । भाग्ने, साधुमार्गी पूज्यश्रीलालजी महाराज के उपदेश से दीक्षा लेकर सतत ९ वर्षों तक शास्त्रों का अध्ययन करने के पश्चात् भोसियाँ तीर्थ पर घि० सं० १९७२ में परमयोगीराज मनिश्री रत्रविजयजी महाराज साहिब के कर कमलों से पुनः जैनधर्म की " दीक्षा स्वीकार की है। स्थानकमार्गी समाज का हमें उपकार मानना चाहिए कि ऐसे-ऐसे . भमूल्य रत्न पैदा कर जैन समाज की सेवा में भेट किये हैं और भविष्य में भी करता रहे ऐसी उम्मेद है। wanannnnnnnn मुनिश्री गुणसुन्दरजी महाराज (स्था० साधु गंभीरमलजी) आप श्री का जन्म मारवाड़ के हरिमा नामक गाँव में पोसवाल जातीय (रॉका गोत्रीय) श्रीमान् सेठ भोमराज जी मेहता के यहाँ वि० सं० १९४६ में हुआ था। वि० सं० १९६१ में स्था० पूज्य. जयमलजी महाराज को समुदाय के साधु नथमलजी के पास दीक्षा ली। पर जब आप सत्य की शोध में निकले तो वि० सं० १९८३ में बिलाड़ा नगर में मुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज का सहयोग मिला और आपने वास्तिक तस्व की शोधकर बड़ी धाम धूम से पुनः जैन दीक्षा स्वीकार करली। इस प्रथ के लिखने में आपका भी सहयोग प्रशंसनीय है। . menempuannnnnnnnnn HOWUNL00000७: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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