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________________ २२८ उपाध्यायश्री कमलसंयमकृत सिद्धान्त सारोद्धार [चौपाइ] [खरतरगच्छीय जिनहर्षसूरि के शिष्य उ० कमलसंयमने । वि० सं० १५४४ में उत्तराध्ययन सूत्रपर टीका रची है [ऐ. ऊँ अईच्चैत्येभ्यो नमः ] वीर जिणेसर पणमिय पाय, समरिय गोयम गणहर राय, कुमत निवारण कहउं संखेवि, एकमना थइनइ सुणउ हेवि ।१। संवत् पनर अठोतरउ जाणि, लुंकु लेहउ मूलि निखाणी, साधु निंदा अहनिसि करई, धर्म धडाबंध ढीलउ धरई ॥२॥ तेहनई शिष्य मिलिइ लषमसी, तेहनी बुद्धि हीआथी खिसी, टालइ जिनप्रतिमानइ मान, दया दया करि टालई दान ||३|| टालइ विनय विवेक विचार, टालई सामायिक उच्चार, पडिकमणानउं टालई नाम, भामई पडिया घणा तिणि गाम ॥४॥ संवत् पनरनु त्रीसइ कालि, प्रगट्या वेषधार समकालि, दया दया पोकारइ धर्म, प्रतिमा निंदी बांधइ कर्म ॥५॥ एहवई हूउ पीरोजजिखान, तेहनइ पातसाह दिइ मान, पाडइ देहरा नइ पोसाल, जिनमत पीडइ दुखमा काल ॥ ६॥ लुंकानइ ते मिलिउ संयोग, ताव माहि जिम सीसक रोग, डगमगि पडीउ सघलउ लोक, पोसालइ आवइ पणि फोक ।७) जोउ हीआ संघातिई काई, बूडउ लोको कुमती थाई, एक अक्षर ऊथापई जेउ, छेह न आवइ दुखनई तेउ ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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