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________________ ए अकेका अति सुविशाल, आगम सूत्र कह्यां पणयाल, तिहां भाषिउं तिम्म चित्ति सुहाइ, तु ए बोल न मार्नु कांइ.१७१ सुणज्यो भविअण केरी कोडि, लुंकट मतनई लागी खोडि, .. मंडिउ वाद थया ता धीर, पण त्रिभुवनि ऊतरिउं नीर. १७२ साचउ धर्म तिहां जय होइ, एह वात जाणइ सह कोई, हारि लुंके गयुं सकार, जिनशासनि वरतइ जयकार. १७३ क्रोध नथी पोषिउ मई रती, वात कही छइ सघळी छती, बोलिउ श्री सिद्धांत विचार, तिहां निदानु सिउ अधिकार? १७४ जीव सवे मझ बंधव समा, पडिइ वरांसइ धरिज्यो क्षमा, जे जिम जाणइ ते तिम करूं, पणि जिनधर्म खलं आदरु. १७५ अम्ह गुरु श्री सोमसुंदर सूरि, जासु पसाइ दुरिआं दूरि, तपगछनायक सुगुण निधान, लक्ष्मीसागर सूरि प्रधान. १७६ श्री सोमजय सूरिंद सुजाण, जसु महिमा जगि मेरु समाण, अहनिस हरषइ प्रणमुं पाय, सुमतिसाधु सूरि तपगछराय. १७७ गुणमंडित पंडित जयवंत, समयरत्न गिरुआ गुणवंत, तसु एयकमलि भमर जिम रमू, इणिपरि भगतिइं दिन नीगमूं.१७८ जसु महिअलि रुअडउ जसवाउ, ते सहि गुरुनु लही पसाउ, ए चउपइ रची अभिराम, लुकट वदन चपेटा नाम. १७९ संवच्छर दहपंच विशाल, त्रिताला वरपे चउसाल, काती शुदि आठमि शुभवार, रची चउपइ बहुत विचार. १८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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