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परिशिष्ट. १
[ पण्डित मुनिश्री लावण्यसमयकृत सिद्धान्त चौपाई ]
( वि० सं० १५४३ कार्तिक शुक्ल अष्टमी )
-: दोहा :सकल जिणंदह पय नमुं, हियडई हरिष अपार । अक्षर जोई बोलसिउ, साचउ समय विचार ॥१॥ सेविअ सरस्वति सामिणी, पामिउ सुगुरु पसाउ । सुणि भवियण वीर जिण, पामिउ शिवपुर ठाउ ॥२॥ सय उगणीस वरिस थयां, पणयालीस प्रसिद्ध । त्यारे पच्छी लुंकु हुउ, असमंजस तिणई किद्ध ॥३॥ हुँका नामिउ मुहंतलु, हुउ एकउ गामि ।
आवि खोटी विदुपरि, भागु करम विरामि ॥४॥ रलई खपइ खीजई घणु, हाथि न लग्गइ काम । तिणि आदरिउ फेरवी, करम लीहानु ताम ॥५॥ आगम अरथ अजाणतु, मंडइ अनरथ मूलि। जिनवर वाणी अवगणी, आप करिउं जग धूलि ॥६॥ रुठउ देव किसिङ करइ, वदनि चपेट न देइ । किसी कुबुद्धि तिसी दीइ, जिणि बहु काल रुलेइ ॥ ७ ॥
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