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________________ - - १९३ हिंसा अहिंसा की समा० का काम पड़ जाय तो उस | रखते हैं। शौचादि का पानी से शुद्धि कर लेते हैं। काम पड़ने पर...काम में लेते हैं। २७-मुँहपती ( हत्थग्गं ) पाठा- मुँहपत्ती दिन भर डोराडाल नुसार वे हाथ में रखते मुँह ऊपर बाँध के रखते हैं और बोलते वक्त मुँह के हैं। मौन करने पर या आगे रख लेते हैं। रात्रि में निद्रावश होने पर भी वह मुँह पर बँधी रहती है। जिसमें असंख्य जीवों की हिंसा होती हैं। पाठक, इस तालिका से स्वयं विचार कर सकते हैं कि हिंसा की मात्रा किस समुदाय में विशेष है। स्थानकमार्गियों का विशेष कहना मन्दिरों में अष्टद्रव्य से पूजा करने के विषय में है कि जो पूजा प्राचीन समय से प्रत्येक तीर्थकर की होती थी। फिर भी यह कहना उस समय था कि जब स्थानकमार्गियों में श्राडम्बर नहीं था। पूज्यों के दर्शनार्थ जाने में पाप समझते थे। पर आज तो इनके यहां भी पूज्यजी और उनके शिष्य इन स्थानकमार्गियों को उपदेश देते हैं कि, वर्ष में एक वार तो पूज्यजी के दर्शन करने ही चाहिएँ, तदनुसार जब पर्युषण आते हैं तो हजारों भक्त पूज्यजी के दर्शनार्थ यत्र तत्र एकत्रित होते हैं, और वहां आत्मकल्याण को भूल कर पाक पकवानादि निमित्त बड़ी बड़ी भट्टिये जलाते हैं, विधर्मी रसोइये चाँवलों का गरमा गरम पानी भूमि पर डालते हैं, जिनसे असंख्य कीड़ों मकोड़ों का तो । १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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