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प्रकरण चौबीसवां हिंसा और अहिंसा की समालोचना । बैन शास्त्रकारों ने हिंसा तीन तरह की बताई है,
" (१) अनुबन्ध हिंसा (२) हेतु हिंसा और ( ३) स्वरूप हिंसा।
(१) अनुबन्ध हिंसा-चाहे गौतम स्वामी जैसा चारित्र पाले, मक्खी की पांख तक को तकलीफ न दें परन्तु वीतराग की आज्ञा के विरुद्ध आचरण करने वाले, उत्सूत्र भाषण करने वाले और मिथ्यात्व का सेवन करने वाले जीवों को अनुबंध हिंसा के कर्म बंधन होते हैं और वे अनन्त काल तक संसार में परिभ्रमण करते हैं। जैसे:-जमाली गौसालादि निह्नव तथा अभव्य जीव भी इसकी गिनती में शामिल हो जाते हैं।
(२) हेतु हिंसा-गृहस्थ लोग अपने जीवन के साधनार्थ नाना काम करते हैं, जैसे:-घर हाट करना, रसोई पानी करना, व्यापारादि कार्य करते हुए धन का उपार्जन करना, प्रजा के जान माल की रक्षार्थ संग्राम करना, पंचेन्द्रियों की विषय हेतु हिंसा करना, इत्यादि हिंसा को हेतु हिंसा कहते हैं । सम्यग् दृष्टि जीव को इन हिंसाओं का प्रतिक्रमण पश्चात्ताप करने से इतना कर्म बन्धन नहीं होता है।
(३) स्वरूप हिंसा-जो शुभ योगों की प्रवृत्ति करने पर स्वरूप अर्थात् देखने में हिंसा नजर आती है, परन्तु परिणाम
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